Book Title: Jain Tattva Mimansa ki Samiksha
Author(s): Chandmal Chudiwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ङ ) हमारा अहित करने और अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिये तो नहीं मिला है। यह हमारे समाज में मिल रहा है अथवा हमें अपने समाज में मिल रहा है । इस बातका विचार करना तो दूर रहा इसके विपरीत यह देखा जाता है कि इनका आदर सत्कार भी खूब किया जाता है। शास्त्रजी की गद्दी पर इनको बैठाकर इनके मुख से उपदेश सुना जाता है और इनके रचे हुए प्रन्थों को छपाने मं द्रव्य की सहायता भी दी जाती है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस तरह दिगम्बर जैन आम्नाय के शास्त्रों और उनके अनुयायियों के लिये यह समय बड़ा नाजुक है। समय रहते हम न चेते तो असली दिगम्बर जैन धर्म का क्या स्वरूप है यह सर्व साधारण न जान सकेंगे और तब सर्वज्ञ वीतरागोपदिष्ट वाणी से जो जगत् का हित साधन होना चाहिये, वह न हो सकेगा । धन्यवाद आश्विन सुदी १० श्रीवीर सं० २४५८ अक्टूबर १६६२ सम्यग्ज्ञान का संसार में प्रचार हो, लोग मिथ्यात्व के फेर में पड़कर अपना अहित न कर बैठें इसलिये नीचे लिखे महानुभावों ने इस "जैन तत्र मीमांसा की समीक्षा" नामक पुस्तक के प्रकाशन में सहायता दी है एतदर्थ वे धन्यवाद के पात्र हैं। अन्य लोगों को भी आपका अनुकरण कर इस सनातन दिगम्बर जैन धर्म के तत्त्वों के प्रचार में सहायक बनना चाहिये । ५०००) सेठ पारसमलजी, कासलीवाल, बालू दावाले, कलकत्ता २५१) ब्रह्मचारी पन्नालाल उमाभाई अहमदाबाद १००) सेठ भंवरीलालजी वाकलीवाल, मनीपुर ( आसाम ) १००) सेठ गोविंदलालजी अग्रवाल, फरमेसगंज ( बिहार ) ५१) गुप्त दान ० श्रीलाल जैन काव्यतीर्थ महामंत्री - संस्था For Private And Personal Use Only

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