Book Title: Jain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Author(s): Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 15
________________ प्रस्तुत कृति जैन वाङ्मय इतना विशाल और अगाध है कि उसके अनेक प्रमेय कितने ही विद्वानोंके लिए अज्ञात एवं अपरिचित हैं और जिनका सूक्ष्म तथा गहरा अध्ययन अपेक्षित है । जीवसिद्धान्त, कर्मवाद, स्याहाद, अनेकान्तवाद, नयवाद, निक्षेपवाद, सप्तभङ्गी, गुणस्थान, मार्गणा, जीवसमास प्रभृति ऐसे महत्त्वपूर्ण विषय हैं जिनकी चर्चा और विवेचन जैन श्रुतमें ही उपलब्ध है । परन्तु यह भारतीय ज्ञानराशि - की बहुमूल्य एवं असामान्य ज्ञान-सम्पदा होने पर भी अध्येताओंका उसके अध्ययन, मनन और शोधकी ओर बहुत ही कम ध्यान गया है । ऐसा ही एक विषय 'जैन तर्कशास्त्र में अनुमान विचार' है, जिसपर शोधात्मक विमर्श प्रायः नहीं हुआ है । जहाँ तक हमें ज्ञात है, जैन अनुमानपर अभीतक किसीने शोध-प्रबन्ध उपस्थित नहीं किया । अतएव हमने जनवरी १९६५ में डा० नन्दकिशोर देवराज के परामर्शसे उन्हींके निर्देशन में उसपर शोध कार्य करनेका निश्चय किया और काशी हिन्दूविश्वविद्यालय से उसकी विधिवत् अनुमति प्राप्त की । फलतः तीन वर्ष और तीन माह बाद ६ मई १९६० को उक्त विषयपर अपना शोध-प्रबन्ध विश्वविद्यालयको प्रस्तुत किया, जिसे विश्वविद्यालयने स्वीकृत कर गत ३० मार्च १९६९ को अपने दीक्षान्त समारोह में 'डॉक्टर आफ फिलॉसॉफी' की उपाधि प्रदान की । प्रसन्नता है कि वही प्रबन्ध प्रस्तुत कृतिके रूपमें मनीपियोंके समक्ष है । स्मरणीय है कि इस प्रबन्ध में जैन तर्कशास्त्र में उपलब्ध अनुमान विचारका ऐतिहासिक एवं समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत करते समय भारतीय तर्कशास्त्रकी सभी शाखाओं में विहित अनुमान विचारका भी सर्वेक्षण किया गया है, क्योंकि उनका घनिष्ठ सम्बन्ध है और परस्पर में वे कई विषयोंमें एक-दूसरेके ऋणी हैं । इससे तुलनात्मक अध्ययन करनेवालोंको एक जगह भारतीय अनुमानकी प्राय: पूरी सामग्री मिल सकेगी । इसमें पाँच अध्याय और बारह परिच्छेद हैं । प्रथम अध्याय में, जो प्रास्ताविक - रूप है, चार परिच्छेद हैं । प्रथम परिच्छेद में भारतीय वाङ्मयके आधारसे अनुमानके प्राचीन मूल रूप और न्याय, वैशेषिक, बौद्ध, मीमांसा, वेदान्त एवं सांख्य दर्शनगत अनुमान- विकासको दिखाया है । द्वितीयमें जैन परम्पराका अनुमान - विकास प्रदर्शित है। तृतीय में अनुमानका स्वरूप, अनुमानाङ्ग ( पक्षधर्मता और व्याप्ति तथा जैन दृष्टिसे केवल व्याप्ति), अनुमानभेद, अनुमानावयव और अनुमानदोष इन सभी अनुमानीय उपादानोंका संक्षिप्त चिन्तन अङ्कित है । चतुर्थ परिच्छेद में भारतीय अनुमान और पाश्चात्य तर्कशास्त्रपर दिङ्मात्र तुलनात्मक अध्ययन निबद्ध है।

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