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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
पहला बोल
(बोल नम्बर १ से ६ तक) १-आन्मा-जो निरन्तर ज्ञानादि पर्यायों को प्राप्त होता है वह
आत्मा है । मब जीवों का उपयोग या चैतन्य रूप लक्षण एक हैं। अनः एक ही आत्मा कहा गया है।
(ठाणांग १, सूत्र २) २-ममकित-मज्ञ द्वाग प्ररूपित पारमार्थिक जीवादि पदार्थों
का श्रद्धान कग्ना ममकिन है । ममकित के कई प्रकार से भंद किये गये हैं । जैसेएगविह दुविह तिविहं. चउहा पंचविह दमविहं सम्म । दवाई काग्गाई. उवमम भएहिं वा मम्मं ॥१॥
(प्रवचन सारोद्धार ६४२ वीं गाथा ) अर्थात् यमकित के द्रव्य. भाव. उपशम आदि के भेद से एक दो तीन चार पांच तथा दम भेद होते हैं । ( इनका विस्तार आगे के बोलों में किया जायगा )
(तत्त्वार्थ सूत्र प्रथम अध्याय)
(पंचाशक अधिकार १) ३-दण्डः-जिमसे जीवों की हिंमा होती है। उसे दण्ड कहने
हैं । ( दण्ड दो प्रकार के हैं-द्रव्य और भाव । लकड़ी, शस्त्र आदि द्रव्य दण्ड हैं । और दुष्प्रयुक्त मन आदि भाव दण्ड हैं।)
(ठाणांग १ सूत्र ३) ४-जम्बूद्वीपः-निर्यक् लोक के अमंग्व्यान द्वीप और समुद्रों
के मध्य में स्थित और सब से छोटा, जम्बृवृक्ष से उप