Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 509
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 445 (4) विपरीत स्वम दर्शन:-स्वम में जो वस्तु देखी है / जगने पर उससे विपरीत वस्तु की प्राप्ति होना विपरीत स्वम दर्शन है। (5) अव्यक्त स्वम दर्शनः-स्वम विषयक वस्तु का अस्पष्ट ज्ञान होना भव्यक्त स्वम दर्शन है। ४२२-पाँच देवः जो क्रीड़ादि धर्म वाले हैं अथवा जिनकी आराध्य रूप से स्तुति की जाती है वे देव कहलाते हैं। देव पाँच हैं:(१) भव्य द्रव्य देव / (2) नर देव / (3) धर्म देव। (4) देवाधिदेव / (5) भाव देव / (1) भव्य द्रव्य देवः-आगामी भव में देव होकर उत्पन्न होने वाले तिर्यश्च पञ्चेन्द्रिय एवं मनुष्य भव्य द्रव्य देव कहलाते है। (2) नर देवः-समस्त रत्नों में प्रधान चक्र रत्न तथा नवनिधि के स्वामी, समृद्ध कोश वाले, बत्तीस हज़ार नरेशों से अनुगत, पूर्व पश्चिम एवं दक्षिण में समुद्र तथा उत्तर में हिमवान पर्वत पर्यन्त छः खंड पृथ्वी के स्वामी मनुष्येन्द्र चक्रवर्ती नर देव कहलाते हैं। (3) धर्म देवः -श्रुत चारित्र रूप प्रधान धर्म के आराधक, ईर्या आदि समिति समन्वित यावत् गुप्त ब्रह्मचारी अनगार धर्म देव कहलाते हैं।

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