Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 516
________________ [ ख ] कल्पोपपन्न ग्रैवेयक अशुद्ध कल्पातीत प्रवेयक पुदल पुदल ध्रोव्य योनियों पुद्गल ध्रौव्य योनियाँ योनियों योनियों संवृत सवृत्त संवृत योनि प्रतिपति व्युत् प्राहित्त समकित्त शुद्धियों शुद्धियों करना तथा रूप (श्राकक) पल्पोपम परिमाण एक श्रागमोदम कोड़ा कोड़ी सागरोपप संवृत विवृत योनि प्रतिपत्ति व्युद् ग्राहित समकित शुद्धियाँ शुद्धियाँ करता तथारूप (साधु) पल्योपम परिमाण से एक आगमोदय कोड़ा कोड़ी सागरोपम होती है होता है होने परिणाम परिमाण

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