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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ७३-तीन अच्छेधः
(१) समय (२) प्रदेश (३) परमाणु । समयः-काल के अत्यन्त सूक्ष्म अंश को, जिसका विभाग न
हो सके, समय कहते हैं। प्रदेशः-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय,
जीवास्तिकाय, और पुद्गलास्तिकाय के स्कन्ध या देश से
मिले हुए अतिसूक्ष्म निरवयव अंश को प्रदेश कहते हैं । परमाणुः स्कन्ध या देश से अलग हुए निरंश पुद्गल को परमाणु कहते हैं।
इन तीनों का छेदन, भेदन, दहन, ग्रहण नहीं हो सकता । दो विभाग न हो सकने से ये अविभागी हैं। तीन विभाग न हो सकने से ये मध्य रहित हैं। ये निरवयव हैं। इस लिए इनका विभाग भी सम्भव नहीं है।
(ठाणांग ३ उद्देशा २ सूत्र १६६) ७४-जिन तीनः
(१) अवधि ज्ञानी जिन (२) मनापर्यय ज्ञानी जिन (३) केवल ज्ञानी जिन ।
राग द्वेष (मोह ) को जीतने वाले जिन कहलाते हैं। केवल ज्ञानी तो सर्वथा राग द्वेष को जीतने वाले एवं पूर्ण निश्चय-प्रत्यक्ष ज्ञानशाली होने से साक्षात् ( उपचार रहित) जिन हैं । अवधि ज्ञानी और मनःपर्यय ज्ञानी निश्चय-प्रत्यक्ष ज्ञान वाले होते हैं । इस लिए वे भी जिन सरीखे होने से