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शा सेठिया जैन ग्रन्थमाला चात कहना सापेक्ष भक्तपान विच्छेद है और यह अतिचार
रूप नहीं है। नोट:-विना कारण किसी की जीविका का नाश करना तथा
नियत समय पर वेतन न देना आदि भी इसी अतिचार में गर्भित है।
हरिभद्रीय आवश्यक पृष्ठ ८१६
__ (उपासक दशांग सूत्र) ३०२--सत्याणुव्रत (स्थूल मृषावाद विरमण व्रत) के पाँच
अतिचारः-- (१) महमाऽभ्याख्यान । (२) रहोऽभ्याख्यान । (३) स्वदार मन्त्र भेद । (४) मृषोपदेश ।
(५) कूट लेखकरण । (१) सहसाऽभ्याख्यान-विना विचारे किसी पर मिथ्या आरोप
लगाना सहसाऽभ्याख्यान है । अनुपयोग अर्थात् असावधानी से विना विचारे आरोप लगाना अतिचार है । जानने हुए इरादा पूर्वक तीव्र संक्लेश से मिथ्या आरोप लगाना
अनाचार है और उससे व्रत भंग हो जाता है। (२) रहोऽभ्याख्यान-एकान्त में सलाह करते हुए व्यक्तियों पर
आरोप लगाना रहोऽभ्याख्यान है। जैसे ये राजा के अपकार की मन्त्रणा करते हैं। अनुपयोग से ऐसा करना अतिचार माना गया है और जान बूझ कर ऐसा करना अनाचार में शामिल है। एकान्त विशेषण होने से यह अतिचार पहले अतिचार से भिन्न है। इस अतिचार में सम्भावित अर्थ कहा जाता है।