Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 484
________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला श्रोत्रेन्द्रिय कान में प्रविष्ट शब्दों को स्पर्श करती हुई ही जानती है। चक्षुरिन्द्रिय जघन्य अङ्गुल के संख्यातवें भाग उत्कृष्ट एक लाख योजन से कुछ अधिक दूरी पर रहे हुए अव्यवहित रूप को देखती है / यह अप्राप्यकारी है / इस लिये रूप का स्पर्श करके उसका ज्ञान नहीं करती। प्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय-ये तीनों इन्द्रियों जघन्य अङ्गुल के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट नव योजन से प्राप्त अव्यवहित विषयों को स्पर्श करती हुई जानती है। इन्द्रियों का जो विषय परिमाण है वह आत्माङ्गल से जानना चाहिए / (पन्नवणा पद 15) ३६५-पांच काम गुण:-- (1) शब्द। (2) रूप। (3) गन्ध / (4) रस / (5) स्पर्श। ये पाँचों क्रमशः पाँच इन्द्रियों के विषय हैं / ये पाँच काम अर्थात् अभिलाषा उत्पन्न करने वाले गुण हैं / इस लिए काम गुण कहे जाते हैं। (ठाणांग 5 उद्देशा 1 सूत्र 360 ) ३६६-पाँच अनुत्तर विमानः-- (1) विजय। (2) वैजयन्त। (3) जयन्त / (4) अपराजित / (5) सर्वार्थसिद्ध /

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