Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 494
________________ 430 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (5) पर विस्मयोत्पादनः--इन्द्रजाल वगैरह कुतूहल, पहेली तथा कुहेटिक, आभाणक (नाटक का एक प्रकार) आदि से दूसरों को विस्मित करना पर विम्मयोत्पादन है। झूठ मूठ ही आश्चर्य में डालने वाले मन्त्र, यन्त्र, तन्त्र आदि का ज्ञान कुहेटिका विद्या कहलाती है। ४०३--किल्विषी भावना के पाँच प्रकार: (1) श्रुतबान / (2) केवली। (3) धर्माचार्य / (4) मंघ (5) माधु / उपरोक्त पाँचों का अवर्णवाद बोलना, उनमें अविद्यमान दोप बतलाना आदि ये किल्चपी भावना के पाँच प्रकार हैं। इसी के साथ मायावी होना भी किल्बिपी भावना में गिनाया गया है। कहीं कहीं 'संघ और माधु' के बदले मर्व साधु का अवर्णवाद करना कह कर पाँचवाँ प्रकार मायावी होना बतलाया गया है। मायावी:--लोगों को रिझाने के लिये कपट करने वाला, महापुरुषों के प्रति स्वभाव से कठोर, बात बात में नाराज और खुश होने वाला, गृहस्थों की चापलूसी करने वाला, अपनी शक्ति का गोपन करने वाला दूसरों के विद्यमान गुणों को ढांकने वाला पुरुष मायावी कहलाता है। वह चोर की तरह सदा सर्व कार्यों में शंकाशील रहता है और कपटाचारी होता है।

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