Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 505
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 441 (5) बल वीर्य पुरुषाकार पराक्रम प्रतिघात:--गति, स्थिति आदि के प्रतिघात होने पर भोग की तरह प्रशस्त बल वीर्य पुरुषाकार पराक्रम की प्राप्ति में रुकावट पड़ जाती है। यही बल वीर्य पुरुषाकार पराक्रम प्रतिघात है। शारीरिक शक्ति को बल कहते हैं / जीव की शक्ति को वीर्य कहते हैं / पुरुष कर्तव्य या पुरुषाभिमान को पुरुषकार (पुरुषाकार) कहते हैं। बल और वीर्य का प्रयोग करना पराक्रम है। (ठाणांग 5 उद्देशा 1 सूत्र 406) ४१७--पांच अनन्तक: (1) नाम अनन्तक। (2) स्थापना अनन्तक / (3) द्रव्य अनन्तका (4) गणना अनन्तक / (5) प्रदेश अनन्तक / (1) नाम अनन्तकः-सचित्त, अचित्त, आदि वस्तु का 'अनन्तक' इस प्रकार जो नाम दिया जाता है वह नाम अनन्तक है / (2) स्थापना अनन्तक:-किसी वस्तु में अनन्तक की स्थापना करना स्थापना अनन्तक है। (3) द्रव्य अनन्तक:-गिनती योग्य जीव या पुद्गल द्रव्यों का अनन्तक द्रव्य अनन्तक है। (4) गणना अनन्तक:-गणना की अपेक्षा जो अनन्तक संख्या है वह गणना अनन्तक है। (5) प्रदेश अनन्तकः--आकाश प्रदेशों की जो अनन्तता है / वह प्रदेश अनन्तक है। (ठाणांग 5 उद्देशा 3 सूत्र 462)

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