Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 495
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ४०४-आभियोगी भावना के पाँच प्रकारः (1) कौतुक / (2) भूतिकर्म / (3) प्रश्न / (4) प्रश्नाप्रश्न / (5) निमित्त / (1) कौतुक:- बालक आदि की रक्षा के निमित्त म्नान कराना, हाथ घुमाना, मन्त्र करना, थुत्कारना, धूप देना आदि जो किया जाता है वह कौतुक है। (2) भूति कर्म:-वसति, शरीर और भाण्ड (पात्र) की रक्षा के लिये राख, मिट्टी या सूत से उन्हें परिवेष्टित करना भूति कर्म है। (3) प्रश्नः-दूसरे से लाभ, अलाभ आदि पूंछना प्रश्न है / अथवा अंगूठी, खड्ग, दर्पण, पानी आदि में स्वयं देखना (4) प्रश्नाप्रश्नः-स्चम में आराधी हुई विद्या में अथवा घटि कादि में आई हुई देवी से कही हुई वात दूसरों से कहना प्रश्नाप्रश्न है। (5) निमित्तः-अतीत, अनागत एवं वर्तमान का ज्ञान विशेष निमित्त है। इन कौतुकादि को अपने गौरव आदि के लिये करने वाला साधु आभियोगी भावना वाला है। परन्तु गौरव रहित अतिशय ज्ञानी साधु निस्पृह भाव से तीर्थोन्नति आदि के निमित्त अपवाद रूप में इनका प्रयोग करे तो वह श्राराधक ४०५-आसुरी भावना के पाँच भेदः (1) सदा विग्रह शीलता (2) संसक्त तप

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