Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 01
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 496
________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (3) निमित कथन (4) निष्कृपता __ (5) निग्नुकम्पना (1) सदा विग्रह शीलताः-हमेशा, लड़ाई झगड़ा करते रहना, करने के बाद पश्चात्ताप न करना, दूसरे के खमाने पर भी प्रसन्न न होना और सदा विरोध भाव रखना, मदा विग्रह शीलता है। (2) संसक्त तपः--आहार, उपकरण, शय्या आदि में आसक्त साधु का आहार आदि के लिये अनशनादि तप करना संसक्त तप है। (3) निमित्त कथन:--अभिमानादि वश लाभ, अलाभ, सुख दुःख, जीवन, मरण विषयक तीन काल सम्बन्धी निमित्त कहना निमित्त कथन है। (4) निष्कृपता:-स्थावरादि सत्वों को अजीव मानने से तद्विषक दयाभाव की उपेक्षा करके या दूसरे कार्य में उपयोग रख कर आसन, शयन, गमन आदि क्रिया करना तथा किसी के कहने पर अनुताप भी न करना निष्कृपता है / (5) निरनुकम्पता:-कृपापात्र दुःखी प्राणी को देख कर भी क्रूर परिणाम जन्य कठोरता धारण करना और सामने वाले के दुःख का अनुभव न करना निरनुकम्पता है / ४०६-सम्मोही भावना के पाँच प्रकार: (1) उन्मार्ग देशना / (2) मार्ग दूषण / (3) मार्ग विप्रतिपत्ति। (4) मोह / (5) मोह जनन /

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