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श्री सेठिया जैन ग्रन्थ माला (५) अनवस्थित सामायिक करणः---अव्यवस्थित रीति से सामायिक करना अनवस्थित सामायिक करण अतिचार है।
जैसे अनियत सामायिक करना, अल्पकाल की सामायिक करना, करने के बाद ही सामायिक छोड़ देना, जैसे तैसे ही अस्थिरता से सामायिक पूरी करना या अनादर से सामायिक करना।
अनुपयोग से प्रथम तीन अतिचार हैं और प्रमाद बहुलता से चौथा, पाँचवां अनिचार है।
(उपामक दशांग सूत्र ) (हरिभद्रीय आवश्यक पृष्ठ ८३३ से ८३४) ३१०--देशावकाशिक व्रत के पाँच अतिचार:
(१) आनयन प्रयोग। (२) प्रेष्यप्रयोग । (३) शब्दानुपात । (४) रूपानुपात ।
(५) बहिः पुद्गल प्रक्षेप । (१) आनयन प्रयोगः-पर्यादा किये हुए क्षेत्र से बाहर स्वयं
न जा सकने से दूसरे को, तुम यह चीज़ लेते आना इस प्रकार संदेशादि देकर सचित्तादि द्रव्य मँगाने में लगाना
आनयन प्रयोग अतिचार है। (२) प्रेष्य प्रयोग-पर्यादित क्षेत्र से बाहर स्वयं जाने से मर्यादा
का अतिक्रम हो जायगा। इस भय से नौकर, चाकर आदि आज्ञाकारी पुरुष को मेज कर कार्य कराना प्रेष्य प्रयोग
अतिचार है। (३) शब्दानुपात-अपने घर की बाड़ या चहारदीवारी के
अन्दर के नियमित क्षेत्र से बाहर कार्य होने पर