________________ 352 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला भय के मारे शिथिल हो, प्रायश्चित्त वाली हो, संथारा की हुई हो, दुष्ट पुरुष अथवा चोर आदि द्वारा संयम से डिगाई जाती हो, ऐसी साध्वी की रक्षा के लिये साधु उसका स्पर्श कर सकता है। (ठाणांग 5 उद्देशा 2 सूत्र 437) ३४१--आचार्य के पाँच प्रकार: (1) प्रव्राजकाचार्य (2) दिगाचार्य। (3) उद्देशाचार्य (4) समुद्देशानुज्ञाचार्य / (5) आम्नायार्थवाचकाचार्य / (1) प्रव्राजकाचार्य:--सामायिक व्रत आदि का आरोपण करने वाले प्रव्राजकाचार्य कहलाते हैं। (2) दिगाचार्य:-सचिन, अचित्त, मिश्र वस्तु की अनुमति देने ___ वाले दिगाचार्य कहलाते हैं। (3) उद्देशाचार्यः सर्व प्रथम श्रुत का कथन करने वाले या मूल पाठ सिखाने वाले उद्देशाचार्य कहलाते हैं / (4) समुद्देशानुज्ञाचार्य:--श्रुत की वाचना देने वाले गुरु के न होने पर श्रुत को स्थिर परिचित करने की अनुमति देने वाले समुद्देशानुज्ञाचार्य कहलाते हैं / (5) आम्नायार्थवाचकाचार्य:-उत्सर्ग अपवाद रूप आम्नाय अर्थ के कहने वाले आम्नायार्थवाचकाचार्य कहलाते हैं। (धर्मसंग्रह अधिकार 3 पृष्ठ 128)