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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला कि ये वचन वीतराग, सर्वज्ञ भगवान् श्री जिनेश्वर द्वारा कथित हैं। इसलिए सर्व प्रकारेण सत्य ही है। इसमें सन्देह नहीं। अनुपकारी जन के उपकार में तत्पर रहने वाले,जगत में प्रधान, त्रिलोक एवं त्रिकाल के ज्ञाता, राग द्वेष और मोह के विजेता श्री जिनेश्वर देव के वचन सत्य ही होते हैं क्योंकि उनके असत्य कथन का कोई कारण ही नहीं है। इस तरह भगवद् भाषित प्रवचन का चिंतन तथा मनन करना एवं गूढ़ तत्त्वों के विषयों में सन्देह न रखते हुए उन्हें दृढ़ता पूर्वक सत्य समझना और वीतराग के वचनों में मन को एकाग्र करना
आज्ञाविचय नामक धर्मध्यान है।। (२) अपाय विचय-राग द्वेष, कषाय, मिथ्यात्व, अविरति
आदि आश्रय एवं क्रियाओं से होने वाले ऐहिक पारलौकिक कुफल और हानियों का विचार करना । जैसे कि महाव्याधि से पीड़ित पुरुष को अपथ्य अन्न की इच्छा जिस प्रकार हानिप्रद है। उसी प्रकार प्राप्त हुआ राग भी जीव के लिए दुःखदायी होता है।
प्राप्त हुआ द्वेष भी प्राणी को उसी प्रकार तपा देता है। जैसे कोटर में रही हुई अग्नि वृक्ष को शीघ्र ही जला डालती है।
सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, वीतराग देव ने दृष्टि राग आदि भेदों वाले राग का फल परलोक में दीर्घ संसार बतलाया है ।
द्वेषरूपी अग्नि से संतप्त जीव इस लोक में भी दुःखित रहता है । और परलोक में भी वह पापी नरकाग्नि में जलता है।