________________
१८२
श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला स्थानक, सहाय देना और समझाना, इत्यादि विषयक
साध्वाचार का कथन है। यह कालिक सूत्र है। (३) निशीथ सूत्र-निशीथ शब्द का अर्थ है प्रच्छन्न अर्थात्
छिपा हुआ । इस शास्त्र में सब को न बताने योग्य बातों का वर्णन है । इसलिए इस सूत्र का नाम निशीथ है। अथवा जिस प्रकार निशीथ अर्थात् कतक वृक्ष के फल को पानी में डालने से मैल नीचे बैठ जाता है। उमी प्रकार इस शास्त्र के अध्ययन से भी आठ प्रकार के कर्म रूप पंक का उपशम, क्षय अथवा क्षयोपशम हो जाता है । इस लिए इसे निशीथ कहते हैं। यह सूत्र नववें प्रत्याख्यान पूर्व की तृतीय वस्तु के बीसवें प्राभृत से उद्धृत किया गया है। इस सूत्र में बीस उद्देशे हैं । पहले उद्देशे में गुरु मासिक प्रायश्चित्त, दूसरे से पांचवें उद्देशे तक लघुमासिक प्रायश्चित्त, छठे से ग्यारहवें उद्देशे तक गुरु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त, बारहवें से उन्नीसवें उद्देशे तक लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित्त का वर्णन है । बीसवें उद्देशे में प्रायश्चित्त की विधि बतलाई गई है। यह
कालिक सूत्र है। (४) व्यवहार सूत्रः-जिसे जो प्रायश्चित्त आता है। उसे वह प्राय
श्चित देना व्यवहार है। इस सूत्र में प्रायश्चित्त का वर्णन है। इस लिए इस सूत्र को व्यवहार सूत्र कहते हैं। इस सूत्र में दस उद्देशे हैं। पहले उद्देशे में निष्कपट और सकपट आलोचना का प्रायश्चित्त, प्रायश्चित्त के भांगे एकल विहारी साधु, शिथिल होकर वापिस गच्छ में आने वाले, गृहस्थ होकर पुनः