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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला में केवल ज्ञान का तिरोभाव है। किन्तु तीर्थकर भगवान् में केवल ज्ञान का आविर्भाव है।
(न्यायकोप) ४५-प्रवृत्तिः-मन, वचन, काया को शुभाशुभ कार्य (व्यापार)
में लगाना प्रवृत्ति है। निवृत्तिः-मन, वचन, काया को कार्य से हटा लेना निवृत्ति है। ४६-द्रव्यः-जिसमें गुण और पर्याय हों वह द्रव्य है । गुणः-जो द्रव्य के आश्रित रहता है वह गुण है । गुण सदैव
द्रव्य के अन्दर ही रहता है । इसका स्वतन्त्र कोई स्थान नहीं है।
(उत्तराध्ययन अध्ययन २८)
(तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय ५) ४७-पर्यायः -द्रव्य और गुणों में रहने वाली अवस्थाओं को
पर्याय कहते हैं । जैसे सोने के हार को तुड़वा कर कड़े बनवाये गये । सोना द्रव्य इन दोनों अवस्थाओं में कायम रहा किन्तु उसकी हालत बदल गई । हालत को ही पर्याय कहते हैं । पर्याय, गुण और द्रव्य दोनों में रहती है।
(उत्तराध्ययन अध्ययन २८) ४८-आधारः-जो वस्तु को आश्रय देवे वह आधार है । जैसे __ घड़ा घी का आधार है। प्राधेयः-आधार के आश्रय में जो वस्तु रहती है वह प्राधेय है ।
जैसे घड़े में घृत है। यहां घड़ा आधार है और घृत (घी) आधेय।
(विशेषावश्यक भाष्य गाथा १४०६)