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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
नोकषाय मोहनीयः - कषायों के होता है वे नोकपाय हैं । वाले (उत्तेजित करने वाले) मोहनीय कहते हैं।
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उदय के साथ जिनका उदय अथवा —— कषायों को उभाड़ने हास्यादि नवक को नोकषाय
( कर्मग्रन्थ पहला गाथा १७ )
३० - आयु की व्याख्या और भेद:- जिसके कारण जीव भव विशेष में नियत शरीर में नियत काल तक रुका रहे उसे कहते हैं ।
आयु के दो भेदः - (१) सोपक्रम आयु (२) निरुपक्रम आयु । सोपक्रम आयु:- जो आयु पूरी भोगे बिना कारण विशेष ( सात
कारण) से अकाल में टूट जाय वह सोपक्रम आयु है । निरुपक्रम :- जो आयु बंध के अनुसार पूरी भोगी जाती है बीच में नहीं टूटती वह निरुपक्रम आयु है। जैसे तीर्थंकर, देव, नारक आदि की आयु ।
( सभाष्य तत्त्वार्थाधिगम अध्याय २ ) ( भगवती शतक २० उद्देशा १० )
३१- स्थिति की व्याख्या और भेद:काल मर्यादा को स्थिति कहते हैं ।
स्थिति के दो भेदः - (१) कायस्थिति (२) भवस्थति ।
काय स्थिति:- किसी एक ही काय ( निकाय) में मर कर पुनः उसी में जन्म ग्रहण करने की स्थिति को कायस्थिति कहते हैं। जैसे:- पृथ्वी आदि के जीवों का पृथ्वी काय से चव कर पुनः असंख्यात काल तक पृथ्वी ही में उत्पन्न होना ।
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