Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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मथुराके लेख
सथुरा-प्राकृत।
[विना कालनिर्देशका] १. मा अहंतान' श्रमणश्राविका ये २.....लहस्तिनीये तोरण प्रति [टापि ] ३. सह माता पितिहि सह
सशू-शशुरेण अनुवाद-अईन्तोंको नमस्कार । अपने माता पिता और सास-ससुरके साथ साधुओंकी एक शिष्या"लहस्तिनी (बलहस्तिनी), के हुक्मसे एक तोरण खड़ा किया गया।
[ऐसा मालूम पड़ता है कि उस समय माता-पिता और सास-ससुरके साथ कोई धार्मिक कार्य करनेसे, उनको भी पुण्यप्राप्तिमें साझीदार समझा जाता था।
[EI, I, XLIII, n° 17]
मथुरा-प्राकृत।
[विना कालनिर्देशका] १. अ. नमो अरहतान फगुयशस २. अ. नतकस भयाये शिवयशा३. अ. ---------काये १. ब. आयागपटो कारिनो २. व. अरहतपुजाये [1] १ 'नमो अरहतान' पटना चाहिये। २ 'प्रतिष्ठापित' पढो । सभवतः पहली और दूसरी पक्तिके अन्तम और अधिक अक्षर टूटे हुए मालूम पडते है।
शि०२