________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विचार-पत्रकम् सम्पादक-आचार्य महाराज श्री विजययतीन्द्रसरिजी जैनवाङ्मय अगाध है, उसमें अनेक ज्ञातव्य बातें भरी पडी है- जिनको मनन करने में बुद्धि भी संकुचितसी हो जाती है। परन्तु वे बात असत्य नहीं कही जा सकतीं। उन बातों की सत्यता को जानने के लिये खोज करने और विचार को विशाल बनाने की आवश्यकता है। आज आश्चर्यजनक आविष्कारों का प्रार्दुभाव हुआ और प्रति-दिन हो रहा है वह सब खोज का ही प्रभाव है। कहावत भी है कि जिन खोजा तिन पाईया, गहरे पानी पैठ।' दर असल में खोज शास्त्रों का मन्थन है। जो बात हजारों वर्ष पहले हुई या शानों में कही गई जिनकी सत्यता को मानने में हृदय सन्दिग्ध रहता है, खोज ने उसकी वास्तविक परिस्थिति को प्रत्यक्ष कर दिया है। ___हजारों वर्ष पूर्व जैनशास्त्रोंने खनिज-पदार्थों में जीव बतलाया थाजिसको लोग दिल्लगी में उडाते और गप्प समझते थे। परन्तु जब डाक्टर जगदोशचन्द्र बोसने अनेक साधनों के द्वारा वनस्पति और खनिज पदार्थों में जीवात्मा के अस्तित्व का स्वयं अनुभव किया, तब उन्होंने निस्सन्देह अपना सन्देश जनता को सुनाया कि- “जब मैंने खनिज पदार्थ और बनस्पति आदि के मुख्य भावों को और उन सब में एक ही आदि तस्व के अस्तित्व को देखा, जब मैंने प्रकाश किरणों में चमकनेवाले सूक्ष्म धूलिकण में पृथ्वी पर निवास करनेवाले असंख्य प्राणियों और आकाश में प्रकाशित होनेवाले सूर्यादिक ग्रहों में इसी एक आदि तत्त्व का अस्तित्व देखा, तब मुझे पहली बार ही मेरे पूर्वज ऋषियों की उन बातों का, जिनको उन्होंने तीन हजार वर्ष पहले कहा था, कुछ कुछ अर्थ समझ में आया। उन पूर्वजोंने क्या कहा था? उन्होंने कहा था कि इस विश्व की अनेक भिन्न-भिन्न वस्तुओं में वह एक ही आदि तत्त्व भरा हुआ है। जो मनुष्य इस बात को देखता है वही उस अन्तिम सत्य को पा सकेगा, दूसरा नहीं।" बोसने यह केवल कहा ही नहीं, किन्तु प्रयोगों के द्वारा सिद्ध करके भी बतलाया है । डाक्टर बोस के आविष्कार के बाद इस सत्यता को सारी दुनिया मानने लगी है।
आप्त-कथित जैनवाङ्मय में जितनी बातें गुम्फित हैं वे असत् नहीं, अक्षरक्षः सत्य हैं। उनमें कतिपय बातें परिशोध (खोज ) मांगती हैं। हम यहाँ एक प्राचीन पत्र उद्धृत करते हैं जो श्रीराजेन्द्रजैनागमग्रन्थसंग्रह के फुटकर पत्रों के विंडल को देखते हुए उपलब्ध हुआ है। इसमें लेखन समय और लेखक का नाम नहीं है, लेकिन लिपी पर से अनुमान किया जा सकता है कि विक्रमीय१४ और १५वीं शताब्दी के बीच का लिखा
For Private And Personal Use Only