Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Karyalay

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Page 15
________________ अंक ४] बालन्याय. १२५ प्रथम पाठ नियम नहीं है वहां कोई ठीक नतीजा नहीं निकाला (क) जा सकता । आज हम दो उदाहरणोंपर और विचार प्रश्न-बच्चो! आज रविवार है। तुम बतला करेंगे, कि “नियम" से क्या प्रयोजन है। सकते हो कि कल कौन दिन होगा? १-कल्पना करो कि एक ग्वाला सूर्य निकलनेसे उत्तर--सोमवार। पूर्व शहरमें दूध बेचनेके लिये मेरे मकानके सामनेसे प्र०--क्या तुम बता सकते हो कि कल मंगल, जाया करता है । और यह भी कल्पना कर लो कि बुध, या बृहस्पति वार क्यों नहीं होगा? यह मनुष्य ५० बर्षसे लगातार योंही मेरे मकानसे उ०—क्यों कि रविवारके बाद सदैव सोमवार ही जाता है और कोई नागा कभी इससे नहीं हुई। तो होता है, कभी दूसरा दिन नहीं होता। क्या तुम बता सकते हो, कि प्रातःकाल भी वह प्र०-इस लिये यदि हम यह कहें, कि कल बध मेरे मकान के सामने से गुजरेगा, या नहीं? होगा तो क्या हमारा कहना ठीक होगा? २-कल्पना करो मेरा एक मित्र रामदत्त है जो १२ उनी माता आपकसा करताना लडकोंका पिता है। और जिसके आज तक कभी . भ्रमात्मक होगा। लडकी पैदा नहीं हुई। इस रामदत्तकी पत्नी गर्भवती (ख) है । क्या तुम बता सकते हो कि उसका गर्भस्थ-बालक प्र०--बच्चो ! हमारी जेबमें चाबियोंका एक पुत्र होगा या पुत्री ? गुच्छा है, क्या तुम बतला सकते हो कि इन दोनों प्रश्नोंके उत्तर "नहीं" में है । क्यों कि उसमें कितनी कुंजिये हैं ? . पहिले प्रश्नमें दूध बेचनेवालेका बीमार हो जाना अउ०—नहीं साहब! थवा किसी अन्य आवश्यककार्य या लाभकारी व्याप्र०—क्यों ? पारमें लग जाना, या दूधही का अभाव हो जाना संभउ०—इस लिये कि कोई ऐसा नियम नियत व है । दूसरे उदाहरणमें प्रकृतिका कोई ऐसा नियम नहीं है कि जिससे किसी गुच्छेकी कांज- नहीं है, कि अमुक मनुष्यके घर सदैव लडके ही होंयोंकी संख्या निर्धारित हो सके। लडकी कभी न हो। बस हम देखते हैं कि “न्याय" के नियमका उपरोक्त प्रश्नोत्तर-रीतिसे यह प्रकट है कि न्याय- प्रयाजन एसा घटनाआस नहा है, जो किसी मुख्य के अनुसार नतीजा वहीं निकाला जा सकता है कि, बातमें अब तक प्रचलित रही हों; किन्तु उस नियत १-जहां कोई निर्धारित नियम हो, और नियमसे है-जो अबतक सत्य पाया गया है-और २-- वहां कोई न्यायका नतीजा नहीं निकल भविष्यमें भी कभी असत्य नहीं हो सकता । जैसे सकता जहां कोई निश्चित नियम नहीं है। बालक-पनका युवावस्थासे पहले होना । दूसरा पाठ बच्चो! कल तुमको यह बताया गया था कि जहां कोई नोट-अध्यापकका कर्तव्य है कि बालकों के मन पर नाना उदाहरणों द्वारा यह सिद्धान्त अंकित कर दे। तृतीय पाठ उपरोक्त निर्धारित नियम ६ प्रकारके हो सकते हैं, अधिक नहीं। १-कारणके ज्ञात होनेसे कार्यका अनुमान | जैसे सुलगते हुये गीले ईधनसे धुंवाका ज्ञान |

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