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दक्षिण भारतमे ९ वीं - १० वीं शताब्दीका जैन धर्म ।
अंक ४]
राजमल्लका एक अधीन शासक था । उसकी माताने पद्म पुराणका पाठ सुनते समय यह सुना कि पौदनपुर में बाहुबलीकी एक मूर्त्ति है । इस लिए अपने पुत्रसमेत वह उस मूर्त्तिके दर्शनको चली, परन्तु मार्गमें एक पहाडीपर, जहां भद्रबाहु स्वामीका देहान्त हुआ था उसने स्वप्न देखा जिसमें पद्मावती देवीने उसे दर्शन देकर कहा कि उसी पहाडीपर बाहुबलीकी एक मूर्ति है जो पत्थरोंसे आच्छादित है, और जिसकी पूर्व समयमे राम, रावण, और मन्दोदरीने पूजा की थी । फिर दूसरे दिन एक बाण मारनेसे बाहुबलीकी मूर्ति दृष्टिगोचर हुई ।
इस प्रकार जैनियोंकी किम्बदन्तियोंके अनुसार यह पता लगता है कि चामुण्डरायने उस मूर्त्तिको नयी निर्माण नहीं कराया, किन्तु उस पहाडीपर एक मूर्ति विद्यमान थी जिसकी उसने सविधि स्थापना और प्रतिष्ठा कराई । इन लोक-कथाओं के अनुसार श्रवण बेलगोलके प्रधान पुरोहितने भी यह कहा था, कि प्राचीन कालमें इस स्थानपर एक मूर्ति थी, जो पृथ्वीसे स्वतः निर्मित हुई थी, और जो गोम्मटेश्वर स्वामीके स्वरूपकी थी । उसकी राक्षसराज रावण सुखप्राप्तिके हेतु उपासना करता था | चामुण्डरायको यह विदित होनेपर उसने कारीगरों द्वारा उस मूर्त्तिके सब अंगोको उचित रूपसे सुडौल बनवाया । उसके सब अंग मोक्षकी इच्छासे ध्याना - वस्थित गोम्मटेश्वर स्वामीके असली स्वरूपके समान थे । उसने उनके चारों ओर बहुतसे मन्दिर और भवन बनवाए | उनके बनजानेपर उसने बडे उत्सव एवं भक्ति पूर्वक मूर्त्तिकी उपासनाका क्रम प्रारंभ किया. स्थल-पुराणस्रे उद्धृत एक अवतरणमें यह लिखा है जो उपरोक्त कथासे मिलता-जुलता है ।
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स्थल- पुराण में वर्णित कथा |
" चामुण्डराजने सपरिवार, पदनपुरस्थित देव गोम्मटेश्वर एवं उसके आसपास स्थित १२५४ अन्य देवता
३२ वेली पागलका ऐतिहासिक और किम्बदन्तियोंके आधार पर वर्णन. ( एशियाटिक रिसर्च, भाग ९, पृ. २५३.)
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ओके दर्शनार्थं यात्रा प्रारंभ की । देव गोम्मटेश्वर के सम्बन्ध में बहुत कुछ सुनकर, वह मार्ग में श्रवण बेलगोल क्षेत्रमें जा पहुंचा । वहां उसने गिरे पडे मन्दिरोंका जिर्णोद्धार किया और अन्य विधानोंके साथ पंचामृतस्नान की भी प्रक्रिया कि । दैनिक, मासिक, वार्षिक एवं अन्य उत्सवोंके संचालनके, लिए उसने सिद्धान्ताचार्यको मठका गुरु नियत किया । मठमें उसने एक ' सत्र ' स्थापित किया जहां यात्रियोंके लिए भोजन औषध और शिक्षाका प्रबन्ध था । उसने अपनी जातिवालोंको इस लिए नियत किया, कि वे तीनों वर्णोंके यात्रियोंकी, जो दिल्ली, कनकाद्रि, स्वित्पुर, सुधापुर, पापापुरी, चम्पापुरी, सम्मिदगिरि, उज्जयन्तगिरि, जयनगर आदिस्थानोंसे आवें, आदरपूर्वक सेवासुश्रूषा करें । इस कार्यके लिए मन्दिर में कई ग्राम लगादिए गए । उसने चारों दिशाओं में शिला - शासन लगवा दिए | १०९ वर्षों तक उसके पुत्रपौत्रोंने इस दानको नियमित रक्खा
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अब हमें इस बातका निर्णय करना उचित है कि यह बात कहांतक ठीक है कि चामुण्डराय श्रवण बेलगोळकी गोम्मटेश्वरकी मूर्त्तिका केवल अनुसन्धानकर्त्ता था । भुजबली चरित्र अथवा बाहुबली चरित्र नामक ग्रन्थ संस्कृत छन्दोंमें है, और उसमें केवल जनश्रुतियोंका समुच्चय है, और कई मुखोंतक पहुंचने के कारण उनमें विचित्रता आगई है । इस ग्रन्थका रचनाकाल ठीक ठीक निर्णय नहीं किया जा सकता । परन्तु इसकी लेखशैलीसे यह अनुमान किया जा सकता है कि यह गोम्मटेश्वरकी मूर्त्तिके स्थापनाके बहुत काल पश्चात् बना होगा । राजावली कथे जैन इतिहास, किम्बदन्ती, आदिका बृहत् संग्रह है जिसको वर्तमान शताब्दीके पूर्वमागमें माईसोर राजवंशकी एक महिला देवी रम्मके निमित्त मलेपूरकी जैनसंस्थाके देवचन्द्र ने रचा था । ४
३३ " स्थल पुराण " से लिया हुआ केप्टेन भाई. एस. एफ. मेकेंजीका अवतरण ( इन्डियन एन्टीक्वेरी, भाग २, पृ० १३० ).
३४ देखो, लु. रा. का श्रवण बेलगोल, भूमिका पृ. ३, ( १८८९ ).