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अंक ४]
आहिंसा अने वनस्पति आहार "चर तेम ज अचर ( तस अने थावर ) उभय प्रका- परंतु जे कायाथी, वचनथी, अने मनथी कोईनी हिंसा रना प्राणीनी हिंसाथी दूर रहे, तेणे ( भिक्षुए ) जीवने करतो नथी तेवो अहिंसक तू था. केम के ते ज खरो अ"हानि करवी नहीं, कराववी नहीं, बीजाने तेम करवामां हिंसक छ जे बीजानी हिंसा करतो नथी." सम्मति आपवी नहीं."
पुनः अंगुत्तरनिकाय (३, १५३ comp,१०, २१२ तेज प्रमाणे धम्मपद (२६,२३) मांः-
मां आपणे वांचीए छीए केः"जे चराचर प्राणीनी हिंसाथी दूर रहे छ तेने हु “हे भिक्षओ !त्रण कार्यवाळो माणस नरकगामी ब्राह्मण कहुं छ; जे पोते हिंसा करतो नथी, अने अन्यने थाय छे. कया ते त्रण कार्यो? जे पोते जीवनी हिंसा हिंसा करवा प्रेरता नथी (तेने हुं ब्राम्हण गणुं छु.)" करतो होय, बीजाने हिंसा करवा प्रेरतो होय, अने ___“सारुप्यमत्तनो-आत्मानुं सारुप्य-अर्थात् ज्यां बीजाने हिंसा करवामां सम्मति आपतो होय.". ज्यां जीव छ त्या त्यां तेना आत्माना जेवू ज कोई छे" "हिंसा. हे भिक्षओ! हं त्रण प्रकारनी गणुं छु. लोए वात भिक्षुए मूलवी जोईए नहीं.२४
भथी कराएली, दोष-धिक्कारथी कराएली, अने अज्ञान" लीला रोपाओने पगनीचे चगदी नाखवाथी दूर रहे- मोहथी कराएली. " वाने, वनस्पति जीवनी हिंसाथी बचवाने. घणा नाना आ वचनो अंगुत्तर निकाय (१०-१७४ ) मानों जीवोनी जिंदगीमो क्षय थतो अटकाववाने " २५ माटे नियमनी जेम मात्र भिक्षुओ माटे ज कहेवामां नथी वर्षा ऋतुमा पर्यटन करवानी ना करी हती. जे फळोने अ- आव्या. ग्निथी, छरीथी, नखथी अचेतन करवामां आव्या होय अथवा आ विषयमा सौथी वधारे विचारवा लायक सुत्तजेमा एक पण बीज रह्यं न होय अथवा जेमां बीजनो निपातन धम्मिक सुत्त छे. भिक्षुना नियमनुं वर्णन कर्या ( अर्थात् बीजमां रहेली बीजां फळो उत्पन्न करवानी पछी, तेमां (श्लोक १८ विगेरे ) कां छे के " हवे हुं शक्तिनो) क्षय थई गयो होय, तेवां ज फळो खावानी तमने गृहस्थना धर्मो कहीश, जेनुं पालन करवाथी मनुष्य रजा आपवामां आवी हती.२६ आ साथे-एटले वनस्पति (बीजा जन्ममां) श्रमण अने अहंतु थाय छे. कारण जीवनी अहिंसा साथे "घास वगरनी" जगामां अन्नना के एक भिक्षु पाथी जे नियमोना पालननी आशा अविशिष्ट भागने फेंकी देवानो आदेश पण वणे स्थले राखी शकाय, तेवा नियामो पालवा गृहस्थ, कदाच समर्थ करवामां आव्यो छे.
थाय नहीं. " अने त्यार पछी "चर तेम ज अचर-तस ___ आ बधुं तो बौद्ध भिक्षुने उद्देशीने विवेचन थयु. थावर-उभय प्रकारना " विगेरे उपर उतारेला श्लोको हवे आपणे ए निर्णय करवानो छे के बौद्ध गृहस्थ माटे बडे उपासक गृहस्थन। धोनी ते गणना गणावे छे. आ नियमो छ के नहीं ? अने जो होय तो ते केटली आथी ए विचार सूचवाय छे के. जो के “ अचरमर्यादा सुधी.
जीवो " ए पदनो बौद्ध मतमा अर्थ मात्र “ वनस्पतिजैनोनी स्थूल अहिंसाना जेवं एमां पण कांई होवू जोईए योनी" एटलो ज थाय छे. छतां चर अने अचर बन्ने ए विचार, दृष्टांत तरीके, संयुत्त निकाय ७, १, ५ ना प्रकारनो अहिं समावेश करवामां आवेलो होवाथी बौद्ध उल्लेखथी दृढ थाय छे. ते स्थळे ज्यारे अहिंसक नामनो धर्मी गृहस्थ, जैन उपासक करतां वधारे व्यापक अर्थमां ब्राह्मण बुद्धपासे आवीन कहे छे के " अयुष्मान् गोतम. अहिंसानुं पालन करे छे. परंतु कदाच ए विचार बराहूं अहिंसक छु" त्यारे तेनो उत्तर बुद्ध श्लोकोमा आ वर पण नहीं होय. कारण के पिटकोमा एक ज शब्द प्रमाणे आपे छः
घणी वार जुदा जुदा अर्थमा प्रयोजाएलो नजरे पडे छे; " तूं जेम कहे छे तेम भले तारूं नाम अहिंसक होः अने तेथी तस अने थावरनो जे अर्थ अहिं ए लोको करता