Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Karyalay

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Page 93
________________ अंक . अहिंसा अने वनस्पति आहार १९३ vi-vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv ५. नीबविचार तथा अन्य ग्रन्थोंने आधारे तेनो अर्थ वनस्पती १७. प्रो. जेकॉबीए तेनो अनुवाद कर्यो छे. सेक्रेड बु०ई०; पु० - अने ज्वारभूनो सिवाय अन्य सर्व एम थाय छे. ४५ पा० २४३ तथा ४१५ ६.अमितगतिनुं सुभाषितसंदोह, ३१, ३, ५, तथा २१, ८, ९, १८ पूर्वपक्षीए शंका उठावी छे ते प्रमाणे शक्य नथी. विरुद्ध ७. अमितगतिनुं सुभाषितसंदोह, २२, २, पक्षमा बंधबेसता दृष्टान्तनुं विचित्र रूपांतर करवाने बदले लेखके ८. " " , २९, ३ एटलं ज कहवं जोईतुं हतुं के भूलथी हणेला प्राणीने खावामा कांई ९. सरखावो, डबसेननु Geschich teder Philosoh पाप नथी. hie, I,२, पा० ३४०. 'भिक्षा' ना अर्थ उपर तेनो आधार छे. १९. “ मत्स्यमांस " ओल्डनबर्ग, परंतु सरसावो अङगुत्तर नि १० स्युडर्स, Eine indische Speisereel.जर्मन काय ३, १५१, 'न मच्छं न मंसं." ओरिएन्टल सोसायटीनुं जर्नल १९०७ पा० ६४१ २. Dनी अन्य सूचना विषे जणावे छे. ११. याज्ञ०१७ १७७, वसि०१४, ३९, गौ०१७,२९, म ०५ २ १ ओल्डनबर्गन विनयपिटकम, पु० २, पा.८१ टीप. १८, आप०१५, १७,३७, विष्णु० ५१, ६. २२. आ स्थळे मूळमां कस्सप छे.पण ते काई खाम नोंधवा जवी Durnrater, Dierragen des hoenigs बाबत नथी,कारण के सगळा बुद्धोनो लगभग सरखो ज उपदेश छ Menandros परिशिष्ट, पा० २७ २३. दुष्ट ब्राह्मग. १३. पहेलां घणी वखत आ प्रमाणे करवामां आव्यु हतुं तेमा ४ Rhys Davids, Buddhism, 8 th ed. जुओ उपर. १४. अल्पदोषमिह ज्ञयम् (१३, ११५,४५). पा० १३१, तथा सॅक्रेड बु० ई०, १०, १०. पा. ४०, ४१ १५. आ रिवाजनी तरफेणमां तेम ज विरुद्धमा घणुं लखायु छे, २५. सुचनिपात १३, १० तथा अन्य स्थळे. जुओ महामहोपाध्याय हरप्रसादशास्त्रीनुं Notices on San २६. महावग्ग, ३, १. Mss., 1907, p. .घणे भागे आ बाबतमा मध सुधारक हता. २७. चुल्लवग्ग, ५, ५,२ ( सरखावो. ओल्डनबर्ग, पा. ७५) महाभारत १३, ११५, ५६ मा जणाव्यु छ के " पूर्वकल्पमां यज्ञपशु २८. मा उपरथी एबुं अनुमान करवु न जोईए के जे चुन्दनी चोखाना लोटनो (व्रीहिमय ) बनावता, अने ते वडे शुभ लोकनी पासेथी तेमने छेवटनी भिक्षा मळी हती ते बौद्धेतर तथा मांसाहा. इच्छावाळा पुरोहितो यज्ञ करावता एम कहेवाय छे." ते ज स्थळे राहतो. केवी जातनो खोराक बनाववो ए निश्चय नहीं करी शक ६३ मा श्लोकमां जैनधर्मनी असर जणाय छे ज्यां भीष्म मधु मां- वाथी तेगे एक पाडोशीने मोकल्यो हतो. अहीं खास जाणवाने सनो उपयोग करवानो निषेध करे छे. ए छे के आ फकरामा (४.१३-२०) चन्द शब्द ज वपराएलो १६ ' Die Dharmapariksha des Amitag छे, तथा तेने 'लुहाग्ना पुत्र' तरीके ओळखाव्यो छे; परंतु आati, Leipzig' 1905 मां एम० मीरोनोए तेनुं पृथक्करण गळ उपर तेने 'आवुसो' (४२) तथा 'भिक्खु (४१ ) पण कर्यु छे., पा०३८. कहेलो छे.

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