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Cacintil
जैन साहित्य संशोधक आ वे धर्मोना सिद्धांत अने प्रक्रियामांनो खास तफावत ज- तथा कोई दुष्टने बहिष्कृत पण करवामां आवतो नहीं; णावी शके छे. 'त्रिरत्न' नामनो प्रख्यात. शब्द बौद्धो हुंकाणमां ए ज के तेमना पंथना साधारण लोकोनी अने जैनोने सामान्य छ, जेनो अर्थ बौद्धो बुद्ध, धर्म स्थिति एवी शिथिल तथा असंबद्ध हती के बौद्ध पंथनो अने संघ करे छ; अने जैन लोको सम्यक्दर्शन, सम्यक्- अनुयायी साथे साथे बीजा पंथनो पण होई शके; कारण ज्ञान, अने सम्यक्आचार करे छे. बेऊ धर्मना आ मुद्रा- के ते माटे कोई जात्तना खास नियमो न हता. हु बुद्धना लेखो खास विचारसूचक छे. बौद्ध लोकोनो मुद्रालेख आधि- महाम संघमांनो एक छु तथा तेना धार्मिक फायदाओ भौतिक अर्थवाळो छे अने जैनोनो आध्यात्मिक अर्थमां छे. हुं उठावं छु; आवी मगरीनी लामणी राखबानो अविपहेला अर्थ उपरथी जणाय छे के बुद्ध धर्ममा व्यावहारिक कार बौद्ध उपासकोने न हतो. जैनोना श्रावकादिनी अने जीवंत उत्साह भरेलो छ, अने बीजा अर्थ उपरथी स्थिति आथी जुदी ज छ. बौद्ध उपासक करतां तद्दन जुदी जणाय छे के जैन धर्म विचारोमां वहनारो अने असाह- ज रीते ते ओ पोताना सबना खास आवश्यक अंग तरीके सिक छे.आ अनुमानने बेऊ धर्मना इतिहासथी समर्थन मळे गणाता; अने पोतानो गाढ संबंध भिक्षुओ साथे जोडाछे.पोताना चपळ अने प्रवर्तक उत्साही बौद्धधर्म, हिंदुस्ता- एलो छे एम तेओ मानता. आ बाबतमा बौद्धधर्मे हिमाननी बहार प्रसर्यो, अने फक्त एक भिक्षु संप्रदायमांथी लय जेवडी मोटी भूल करी छ; अने विकसित थईने सिलोन, बर्मा, तिबेट,तथा अन्य भागोमां वे हिंदुस्तान के ज्या तेनो खास प्रादुर्भाव थयो हतो वधीने एक महान् धर्म तरीके परिणत थयो; पण जैन- त्यांथी, जडमूळथी जतो रह्यो छे. आगळ वधता ई. स. धर्म शान्तवृत्तीथी मात्र हिन्दमां ज चालु रह्यो. बीजो ना सातमा सैकाथी असरकारक बनता जता लोकोना शब्द जेनो जैनो अने बौद्धो बने उपयोग करे छे ते धार्मिक वळणमां फेरफार थतो होवाने लीधे प्रख्यात
जैनोना संघमां चार प्रकारना माणसो- चीनी भुसाफर हुएन्त्संगना समयमा बौद्ध धर्ममां ओट नो समावेश थाय छे-जेम के भिक्षु, भिक्षुणी, श्रावक थतो गयो; अने तेमां पण काळक्रमे नवमा सकामां शंक- . अने श्राविका. बौद्ध लोकाना संघमां फक्त भिक्षुओ अने राचार्ये प्रकटावेली ब्राह्मण धर्मनी संस्थाओना सचोट भिक्षणीओनो ज समावेश थाय छे. ते पंथमां इतर लोकोने विरोधने लीधे पड्या पर पाटु मारवा जेवं थयु. आखरे कोई खास नामथी संप्रदायमां जोडवामां आव्या नथी. ज्यारे बारमा अने तेरमा सैकामां भारतवर्ष उपर, उच्छेपोताना पंथना लोको साथ कोई प्रकारना व्यवस्थित दक मुसलमानोनी स्वारीओ थया लागी त्यारे, तारानाथ संबंध विना कोई पण भिक्षुसंघ न भी शके नहीं, ए स्पष्ट अने भिन्हाजुद्दीननी तवारीखोमां जणाव्या प्रमाणे थोडा ज छे. कारण के पोताना संपदायना अस्तित्वनी खातर घणां बाकी रहेला बौद्ध विहारो तथा चैत्योने सखत पोताना पंथना लोको पामेथी द्रव्य विगेरे मेळववानी आघात पहोच्यो, जेथी बौद्धधर्म केवळ छिन्नभिन्न दशामां दरेक संघने खास करीने जरूर रहे छे ज. पण ए बेऊ आची अंते नाश पाम्यो. तेणे मूळथी ज पोताना उपासपंथोनुं वर्तन पोताना उपासको तरफ तद्दन भिन्न भिन्न कोने भिक्षुसंघसाथे गाढ संबंधमा राख्या नहीं, तेम ज प्रकारनुं हतुं. बौद्धोमां भिक्षुओनी बाबतमां कांई कहेवा- पाछळथी पण ते संबंध योजाई शकयो नहीं, तेथी करीने करवानो बीजाओने कोई अधिकार न हतो. लोकोने साधारण उपासको पाठा ब्राह्मण धर्ममां जोडाई गया संघमां कोई विधिपुरस्सर दाखल करवामां आवता न अने तेथी ब्राह्मणो केवळ गोरपदं करवाने बदले, पुनः बौद्ध हता. तेमने कोई जातनी प्रतिज्ञाओ लेवानी न हती.तेमना धर्मना पहेलांना समय प्रमाणे गोरपदुं तेम ज आचार्यप, आचारोने माटे कोई विधि-निषेधनो खास ग्रंथ न हतो. बंने करबा लाग्या. फक्त थोडाक लोको, अने खास करीने तेमने माटे कोई विशिष्ट धर्मक्रिया करवामां आवती नहीं; बंगाळना केटलाक लोको, ब्राम्हणधर्ममां न भळतां बुद्ध