Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Karyalay
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________________ 296 ... जैन साहित्य संशोधक Gowwwwws (7) संपूर्ण चन्द्रवदन, सतरभेद संयमना प्रतिपालक अढार सहस्र शीलांगरथना(८) धारक, ओगणीस ज्ञाताधर्म ( कथा ) ना प्ररूपक, वीस असमाधि स्थानक रहित, एकवीस सबल(९) [ दोष ] निवारक, बावीस परीषहना जीपक, तेवीस सूयगडांगना अध्ययनना जाण, चौवी(१०)स तीर्थकरनी आज्ञाना प्रतिपालक, पंचवीस भावनाना भावुक, छवीस(११) दशाकल्प-व्यवहार [ अध्ययन ] ना जांण, सतावीस साधुगुणना उपदेशक, अठावीस आचा(१२) रप्रकल्पना जांण, ओगणतीस पापसूत्रप्रसंगना टाळणहार, तीस मोहनीयस्थानक-.. (13) ना जीपक, एकत्रीस सिद्धगुणना जाण, बत्रीस योमसंग्रहना प्रतिपालक, ते(१४) त्रीस गुरुनी आशातनाना वारणहार, चउत्रीस अतिशयना जांण, पांत्रीस श्रीवीत(१५) रागवाणीना गुणना कथक, छत्रीस छत्रीसो सूरिगुणे विराजमान, वादोगरु-- (16) डगोविन्द, वादीगोधुमघरट्ट, मृदितवादीमरट्ट, सरस्वती लब्ध प्रसाद, दलि. (17) त अनेक दुरवादी वाद, समुदनी परे गंभीर, मेरु पर्वतनी परे धीर, प्राप्तसं (18) सार समुद्रतीर, मायामही विदारणसोर श्रीजिनशासन सहकारकीर, (19) कर्मशत्रुविदारणवीर, वाणी मीठी अमृतक्षीर, धर्मकरतां न करे धीर, नि(२०) मल चित्त जिम गंगानीर, उज्ज्वल यश सागर डंडीर, मंजग भवभीर, शौभा(२१) ग्य गुणे अभिनवगुरुहीर, जेणे प्रतिबोध्यो अकबर शाह बडवीर, दि( 22) नकरनी परे अधिक प्रताप तेज, सुविहित जनथी. धरे हेज, वड वैरागी, अति( 23 ) सौभागी, कर्णनी परे त्यागी, मुक्तिना रागी, श्रीबादशाह प्रबोधक, अबोधजी(२४) व प्रतिबोधक, कलिकाल गौतमावतार, तपागच्छ श्रृंगारहार, तपतेज दिवा(२५) कर, गच्छाधिपति, गच्छाधिराज, सर्वोपमायोग्य, भट्टारक पुरंदर (पांच श्री) (21) [15 श्री ] विजयसेनसूरि सूरीश्वर स(२७) परिवार चरणकमलान् श्री आगराकोटना सदा आदेशकारी, चरणसेवक, दासानु(२८) दास, पायरजसमान, सदा सेवक, सा. विमलदास, सा. बंदीदास, सा. लालचंद दुगड, ( 29 थी 42 मी लाईन सूधीमां आगराना आगवोन श्रावकोनां नामो मात्र आपेला छे.) (43 )-समस्त संघनी द्वादशवंदना अवधारशो. अहिंया श्रीपूज्यजीना प्रसादे कुशल-क्षेम छे. पूज्यजीना (44) कुशल-क्षेमना सदा समाचार लखवा, जेथी सेवकोने परमसंतोष उपजे. अपरं अहिंया श्री(४५ ) पजुसण पर्व निराबाधपणे थया छे. अमारी दिन 12 पजुसणनी,-विशेष सावदेश, पूर्वदेश, (46 ) तथा दिल्लीमंडल, मेवातमंडल, रणथंभोर गढदेश, बीजाए घणा देशे अमारी वरती छे, ते संतोष मानजो. ' ( 47 ) श्रीसत्तरभेदी पूजा 15, श्रीजहांगीर बादशाह तखत बेठां पछी आ अपूर्व करणी थई छे. (48) भगवन्तजीना प्रसादे श्रीतपागच्छनी उन्नति विशेष थई छे. श्रीबादशाहजीए फरमान 2 करी दी(४९) धा, ते श्रीपजुसण आव्ये श्रीजीना रामदासजी आगळ थई गुदरण (?) हुकम दीधो. ढंढेरो देवायो. (50) पारीउरवारसारे ( 1 ) दिन 12 अमारी वरतावी. जे वेळा श्रीजीए हुकुम दीधेो ते वेळां दरीखानो (51) भराणो हतो. श्रीजी झरोके बेठा हता. राजा रामदासजी आगळ हता. तेमनी पाछळ फरमान लई ., पं. विवेक हर्ष,

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