Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Karyalay

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Page 102
________________ २०२ धर्ममां दिगंबर अने श्वेताम्बर ए वे विभागो घणा जुना वखतथी पडेला छे तेनो पण एक अधिक पूरावो आमांथी मळी आवे छे. दिगम्बरो पोताना संघमां स्त्रीओने सामेल करता नथी. फक्त श्वेताम्बरो ज तेम करे छे. तेथी आलेखो उपरथी एम सिद्ध थाय छे के मथुरामांनी आ संस्था श्वेताम्बरोनी जहती तथा ई. स. ना प्रथम सैंकामां आ विभक्त अवस्था बराबर निश्चित थएली हती. जैन साहित्य संशोधक. लेखोमांथी थई शके एम छे, ए सिद्ध करवा भाटे प विस्तृत पूरावा हुं आपी शकुं तेम छु; परन्तु ते करवा करता आ विषयमां रस लेनार सज्जनोने प्रो. बुल्हरना लेखो ज स्वयं वांची लेवानी हुं भलामण करवी योग्य धारुं छु हजी जे एक बाबत मारे खास जणाववी जाईए, ते ए छे के, सुप्रसिद्ध चक्र अने स्तूप तथा तेना अन्य अंगो ए बौद्ध धर्मना ज खास बाह्य चिन्हो मनाय छे। पण १८८३ मां लीडन मुकामे भराएली छडी ' इन्टरनेशनल कॉंग्रेस ऑफ ओरीएन्टालीस्टस् ' आगळ वांचेला लेखमां महुम पंडित भगवानलाल इंद्रजीए बतावी आप्युं हतुं के जैन लोको पण स्तूपोने पूजे छे. खोळ कर्या अने हवे प्रो. बुल्हरे ऊंडी शोध पछी सप्रमाण सिद्ध कर्ये छे के चक्र अने स्तूप विषेनी अद्यापि चालती आवती विद्वानोनी मान्यता केवळ भूल भरेली छे. मथुरामांथी एक जैन स्तूपनां अवशेष सुधां प्रकट रीते मळी आव्या छे. पहेलांथी थती आवती भूलने लीधे शरुआतमां एम लाग्युं हतुं के आ स्तूप पण बौद्धोनो हशे; परन्तु तेनी बाजुएथी ज्यारे बे जैन मंदिरोना अवशेषो मळी आव्या तथा जैन लेखो अने प्रतिमाओ विगेरे पण त्यां मळी आव्यां त्यारे आ स्तूप पण जैनोनो ज होवो जाईए, ते विषयमा पछी कोई जातनी शंका रही नहीं. त्यारबाद केटलाक कोतरेला पत्थरो पण मळेला हे, जेना उपर तेना बीजा अवयवशे साथे जैन स्तूपोनो आकार कोतरेलो छे. आपणे हाल सुधी जेने बौद्ध स्तूपो मानता आव्या छीए तेना जेवा ज आ स्तूपो छे. प्रो. बुल्हरे तो पोतानुं अनुमान आगळ दोडावीने एम पण कह्युं छे के स्तूप - पूजा ए जुना वखतमां फक्त जैन अने बौद्ध ज करता एम नहीं, परंतु चुस्त संन्यासीओ ( ब्राह्मण धर्मना ) पण करता हता. एक जैन प्रतिमानी बेसणी जेना उपर कोतरकांम तथा लेख छे तनी शोध खास जाणवा जेवी छे, तेमां बौद्ध प्रतिमाओती माफक ज एक त्रिशूल उपर चक्र काढलुं छे. आ उपरथी एम सिद्ध थाय छे के चक्रनुं चिन्ह ए केवळ बौद्धोनुं ज नथी. जैन ग्रंथोमां आपेली घणी बाबतोनुं समर्थन आ ते लेखमां जणाव्या प्रमाणे, ते प्रतिमा, एक साधुना आलेख उपरथी एक बीजी हकीकत ए मळे हे के जैन संघमा श्रावक-श्राविकाओनी व्यवस्थित रचना करेली छे. में उपर सूचना करेली ज छे के जैन संघमां आपण एक अगत्यनो विभाग गणाय छे, के जं धर्मनी उन्नतिमां वणी महत्त्वनी बाबत छे. ए लेखोमां श्रावक अने श्राविका एवा शब्दो वपराएला छे जैने हाल सरावगी पण कामां आवे छे. बौद्धोमां पण श्रावक शब्द वपराएलो के पण त्यां तेनो अर्थ अर्हत् ( अमुक कक्षानो साधु ) एवो करवामां आवे छे. आ हकिकत श्रावकोनी चोक्स |स्थतिविषे उल्लेख करे हे एटलुंज नहीं, पण जैन अने बौद्ध ए बे महान् धर्मोनी विशिष्टतानुं पण स्पष्ट प्रतिपादन करे छे. खडे एक बीजी उपयोगी बाबत ए छे, के ते लेखांमां श्रावकोनी जःतिविषे पण वारंवार उल्लेख आवेलो छे. जैन अगर बौद्धधर्म वर्णाश्रम दूर करवा मांगे छे, एवी जे मान्यता छे ते तद्दन खोटी छे एम में पहेली जणावेलुं छे. एक माणस श्रावक बनवाथी वर्णभ्रष्ट थतो नथी. ते पोतानी जातिनो बंधो—रोजगार छोडी शके छ, परन्तु कन्यानी आप ले माटे तथा अन्य व्यवहार माटे तो तेने पोतानी जुनी जातिनो ज आश्रित रहनुं पडे छे. एक लेखमां एक लुहारे दान आप्यानुं वर्णव्युं छे. जैन थया पछी ते लुहार बन्यो हशे एम मानवुं भूल भरेलुं छे, कारण के श्रावकोने माटे तो छुहारना धंधानो निषेध करेलो छे. तेथी आ उल्लेख तेना बापदादानी तथा तेनी जाति माटे ज हशे तो पण एम जणाय छे के हालनी माफक ते बखते पण घणा खरा श्रावको वपारी वर्गना ज हता.

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