Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Karyalay

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Page 89
________________ अंक ४] आहंसा अने वनस्पति आहार स्वाद अने स्वाद जन्य सुखनो पण अनुभव करे छे "( दुष्कालना वखतमा) एक गृहस्थ पोताना पुत्रने ज्यरो खैरेखर राग रहित पुरुष तो भोजन करती वखते मारीने खाई शके, अने एक ज्ञानी भिक्षु जो तेमाथी मात्र स्वादनो ज अनुभव करे के परन्त स्वाद जन्य सुखनो मांस ले तो तेने पाप लागे नहीं. अनुभव करतो नथी." " जो कोई माणस मूलथी धाननो ढगलो मानीने" हवे आपणे बौद्धधर्म तरफ वगए. अहिं अहिंसा अने माणस अथवा बालकनो वध करे, तेने अग्नि उपर वनस्पति आहारना संबंधमां एक विवादग्रस्त प्रश्न उत्पन्न मूके, पकाये तो ते बुद्धोनो माटे योग्य एवं भोजन होई थाय छ, के जे प्रश्ननो निर्णय मारा जाणवा प्रमाणे हजु श कोई लावी शक्युं नथी. डॉ० न्यूमेन आदिनो पक्ष कहे आहंया आ प्रमाणे घणा विलक्षण रूपमां बुद्धना छे, के बुद्ध वनस्पति आहार ज करता; ज्यारे बीजो पक्ष के एक मतने आलेख्युं छे के जे असलमा आपणे जेमा घणा विद्वानो छे, तेओ 'अमुक खास प्रसंग सिवाय जोई ए तो, आ प्रमाणे जडी आवे छे, के वध अन्यत्र बुद्ध मांसाहारनी मना करता हता,' ए वातनो कराएला प्राणीना वधनुं कारण पोते कोई पण रीते न इन्कार करे छे. पूर्वपक्ष ज्यारे, अहिंसा ए व्रत भिक्ष तेम होय तेवा मांस सिवाय बौद्ध भिक्षुए अन्य कोई जातज गृहस्थे पाळवाना नियमोमां प्रथम स्थान धरावे छ. ए नो मांसाहार करवा नहीं. बाबत उपर भार मुके छे, त्यारे उत्तर पक्ष, धर्म ग्रंथोना चुल्लवग्गमां (७,३-१५) अने अन्य पिटकोमा केटलाक फकराओनो, तथा महायान तेम ज हीनयान एउ- वणी सारी रीते एक खुलासो आपवामां आव्यो छे. के भय शाखाओना अनुयायीओनो मोटो भाग जे आजे मांस ज्यारे मतभेद उत्पन्न करवानी इच्छाथी ( अर्थात पोभक्षण करवा छतां पोते अहिंसानुं पालन करे छ एम तानी मांगणी स्वीकारवामां नहीं आवे एम सारी रीते माने छे, ते बाबतनो आश्रय ले. छे. जाणतो होवो छतां) देवदत्त मत्स्य अने मांस आहारनी मारा मत मुजब सत्य बन्ने पक्षमा रहेलु छ अने तेना भिक्षुओने माटे मना कराववानी विनति करवा बुद्ध पासे कारणो हवे हुँ विस्तारथी आपुं छु. जाय छे त्यारे बुद्ध तेनी विनतिनो अस्वीकार करे छ१८ एक आश्चर्यजनक वात ए छे, के दक्षिण हिन्दना जैनो अने कहे छे के '......हे देवदत्त ! आठ मास सुधी वृक्षो मां बुद्धसम्बन्धी अद्यापि जाणीती एवी एक हकिकत छ । . नीचे शयन करवानी में रजा आपी छे. १९ तेम ज अदृष्ट, के ते 'बुद्ध एक घणो खराब माणस हतो अने मांसाहारने अश्रुत __ अश्रुत अने अशंकित ए प्रमाणे त्रणे बाबतोमा जे तद्दन उत्तेजन आपतो हतो,' ब्राह्मणधर्मर्नु उपहास आलेखतुं शुद्ध शुद्ध होय तेवा मत्स्य अने मांस [ खावानी पण में रजा अने खण्ड नमण्डन करतुं धर्मपरीक्षा नामे पुस्तक" जे आ तामिल भाषान्तरना रूपमां बणुं प्रसिद्ध छे, तेमा उल्लेखे- अर्थात्, हत प्राणीतेने माटे हणवामां आव्युं छे तेम ली बुद्धनी आ अपकीर्तिन कारण आपणे गोतवं जोईए. ते भिक्षुना दीठामां आवेलुं न होय ( अदिट्ठम् ), तेना ए पुस्तकमां बौद्धधर्म ऊपर सात पद्यो छ; अने तेमां पहेलो माटे हणाएलुं छे एम तेना सांभळवामां पण आव्यु न ज जे आक्षेप करवामां आव्यो छ ते ए छे के 'बुद्धना मत होय (अश्रुतम् ), अने आ मारा माटे हणवामां आव्यो प्रमाणे मांसाहार करवामां पाप नथी.' आ आक्षेप मात्र हशे के केम ? एम तेने शंका पण न आवी होय (अपमनःकल्पित नथी. बीजा प्राचीन जैन पुस्तकोमां पण रिशंकितम् ), तेवा मांसने पवत्तमंस ('पहेलोथी ज अस्तिते रूपान्तरथी मळी आवे छे. दृष्टांत तरीके सूयगडांगसूत्र त्वमा आवेलुं मांस') कहेवामां आवे छे, अने ते उद्दिमां एम कहेल छ के बुद्धे नीचे प्रमाणे उपदेश कर्यों सकतमंस ('हेतुपूर्वक तैयार करेला मांस') थी उहतो. लटा प्रकारचें मनातुं हतुं."

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