Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Karyalay

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Page 58
________________ जैन साहित्य संशोधक [खा. आया सुण्या छः रावत अर्जुनसींघजी लेवा जासीः एकलींगजी भेला वेसीः इसी बात छैः पछै तो वणै सो परीः उदेपुर नो...............नही पिण हवे रजपूत राणावतारो साथ हजार दोय सहर मै आवे............यो हवे संधी सर्व बारै डेरा दीधा छे...............मांही छे बाकी रुप्या दीधासुं निजर आवसी. राज-देशविग्रह भारी ठेरथो मिटणो तो साहिबरे हाथ छैः वले एक टिंखल थयो छेः सलूंबरना घरमे पहाडसिंघ रावत उजेणनी राडि मै काम आव्या पछे भीमसिंघजीने तरवार बंधावी राणे अडसीजीइ सलूंबरनी गादी बैठा. हवै पांच बरस पछी पाछा पहाडसिंगजी प्रगट थया छे. ए विग्रह नवो प्रगट्यो छे. हवणा महीना ५ छ थया छैः डुंगरपुरने चोषले आव्या छे. भीमसिंघजी चीतोड ऊपरे हता तिहांनो जाबतो करी थांणो मेलीने सलूंबर दाखल थया छे. विग्रहमे पाछ नही छै. और समाचार छ ज्युं छे. अत्रत्य पं. नरोत्तमविजयगणि पं. प्रतापविजयगणि विनयविजयगणि लघुशिष्य गिरधरनी वंदणा जाणवीजी पं. क्षेमानंद ग. नेमविजयगणि ठाणु २उदेपुरमें मेल्या छः हेमविजयजी ग. झाडोल छे. ठाणुं २जासमे छे. रत्नानंद ग. मानविजयगाण, उदयपुरनो ढंग महीना एक दोयमें सुदरस्ये जी त्यारे उदेपुर नो ढंग सुदरसी जदी बुलावो आव्ये उदेपुर जावो थास्ये जी ते जांणकुंजी. तत्र पार्श्वस्थ साधुसमुदायने पं. सौभाग्यविजय ग० पं. जयविजयग० पं. भाग्यविजयग० पं. फतेंद्रसागरगणि प्रमुष सर्व साधुसमुदायने वंदणा कहवीजीः पं. हेमसोभाग गणिनी वंदणा पण जाणवीः पं. गुलाबहंसगाणि ठाणुं २ नी वंदणा जाणवीः xxx मेदपाटभे ग्राम.........कोई कोई जायगा वसती छः इस्यो ढंग ढोल देशनो छे जी: केटल लघवामें आवैजीः कृपापत्र वलमान कृपा करवी जीः देवदर्शनमें संभारवा मिती संवत् १८३१ रा मिगसरवदि अष्टम्यां रात्रो पत्र-तुराई लप्यु छ जी:

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