Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Karyalay

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Page 85
________________ अंक ४ ] डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोपरनी प्रस्तावना मुद्रित प्रतिओना मूळथी थोडेक अंशे ज भिन्न छ. में हती. कारण के शीलांक केटलेक स्थळे प्राचीन टीकाकाएकत्रित करेली केटलीक हस्तलिखित प्रतिओं उपरथी रोनो उल्लेख करे छे. शीलांक नवमी शताब्दिना पश्चार्धमा एक स्वतंत्र मूळ तैयार करी लीधुं हतुं के जे मने थई गया होय एम जणाय छे, कारण के तेमणे आचारांग मुद्रित मूळ साथे मेळवी जोवामां घणुं उपयोगी थई सूत्रनी टीका शक वर्ष ७९८ एटले ई. स. ८७६ मां पडयुं छे. समाप्त करी हती, एम कहेवाय छे. (२) ए टीकाउत्तराध्ययन सूत्रनी कलकत्ता वाळी आवृत्ति ( संवत् मांथी हर्षकुले करेलो संक्षेप जेनुं नाम दीपिका छे, ते १९३६ ई. १८७९) मां गुजराती विवरण उपरांत खरतरग- संवत् १५८३ अथवा ई. स. १५१७ मां रचेलो छे. च्छीय लक्ष्मीकीर्ति गणिना शिष्य लक्ष्मीवल्लभनी रचेली सूत्र मारी पासे दीपिकानी एक प्रति छे जेनो में उपयोग दीपिका आपेली छे. आ टीकाथी वधारे प्राचीन देवे- कर्यो छे. ( ३ ) पासचन्द्रनो बालावबोध-एटले गुजन्द्रनी टीका छे अने ते ज टीका उपर में मुख्य आधार राती टीका. माहीतीना मुख्य ग्रंथ तरीके में साधाराख्यो के. ए टीका संवत् ११७९ एटले ई. स. रण रीते शीलांकनी ज टीका वापरी छे. ज्यारे शी११२३ मां रचाई छे अने ते प्रकटरीते शांत्याचार्यनी लांक अने हर्षकुल बंने ममता आवे छे त्यारे टीप्पणमां बृहद्वृत्तिना सारांश रुपे छे. शांत्याचार्य वाळी वृत्ति में में तेमने बताववा ' टीकाकारो' एम लख्युं छे. ज्यारे वापरी नथी. मारी पासे स्ट्रेस्सबर्ग युनिवर्सिटी लाइब्रेरीनी शीलांकनो अमुक टीकांश हर्षकुले पडतो मुकेलो होय मालीकीनी अवचूरिनी पण एक सुंदर प्राचीन हस्तलिखित छे त्यारे हुँ मात्र शीलांकनु ज नाम आपुं छु; अने ज्यारे प्रति छे. आ ग्रंथ पण स्पष्टरीते शान्त्याचार्यनी वृत्तिनो कोई उपयोगनी असल हकिकत हर्षकुल ज आपे छे त्यारे संक्षेप मात्र छे. कारण के लगभग ए तने अक्षरशः त्यां आगळ में तेनुं ज नाम आपेलुं छे. मारे आ स्थळे मळतो आवतो जणाय छे. खास जणावी देवू जाईए के मारी एक हस्तलिखीत सूत्रकृतांगनी मुंबईवाळी आवृत्ति ( संवत् १९३६- प्रातमा हाासर प्रतिमा हासियामां तथा बे बे लीटिओनी वच्चे केटलीक ई. स. १८८०) मांत्रण टीकाओ आपली छः (१) संस्कृत नोटी आपेली छे के जेनी मददथी हुँ केटलीक शीलांकनी टीका: जेमां भद्रबाहुनी नियुक्ति पण आवेली वखते मूळनो खास अर्थ निश्चित करी शक्यो छु. छे. आ टीका सर्वे विद्यमान टीकाओमां सौथी प्राची- बोन एच्. जेकोबी. न छे. परंतु आना पहेला पण बीजी टीकाओ थएली नवेंबर, १८९४.

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