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जैन साहित्य संशोधक
धमा आनी पछी पवित्र जीवन गाळवा संबंधी, साधुनः थता गया अने जैनधर्मनी संस्था ओ सुदृढ रीते स्थिर परिषहो संबंधी, जेमा खास कराने तेमना मार्गमां बता- थती गई. नविन साधने जीवाजीवर्नु बराबर ज्ञान वधारे बवामा आवतां प्रलोभनो तथा असाधुजनो तरफथी उपयोगी मनातुं होय तेम लागे छे. कारण के आ विषय मळता शारीरिक कष्टो संबंधी, तथा धर्मना आदशभूत उपर एक मोटूं अध्ययन आ ग्रंथना अंते आपवामां महावीरनी स्तुति विषयक अध्ययनो आवेलां छे तनी आव्यं छे. जो के आ आखा ग्रंथमां आवेला जदा जुदा पछी बीजा पण तेवा ज विषयोपर अध्ययनो छे. बीजो बधां अध्ययनोनी पसंदगी तथा गोठवणीमां काईक योजश्रतस्कंध जे लगभग संपूर्ण गधयां ज लखाएलो छ तेमां ना जेवी देखाय के खरी परंतु ते सघळां अध्ययनो एक पण आवा ज प्रकारना विषयोनु निरूपण करेलुं छे. परन्तु ज कर्ताना रचेलां के के लेखी अगर मौखिक परंपरागत तेना विविध भागो वच्चे कोई पण देखीतो संबंध जोवामां साहित्यमाथी चूंटी काढेलां छे, ए एक विचारणीय बाबत आवतो नथी. आ उपरथी ते स्कन्ध अनुपूर्तिरूपे गणी छे. कारण के आवा प्रकारचें साहित्य जैन संप्रदायमां, शकाय अने तेथी ते पाछळना कालमां प्रथम स्कंधमा तेम ज अन्य संप्रदायोमा पण, धर्मशास्त्र ग्रंथोनी रचनानी अपलो एक उमेरो छे. प्रथम स्कन्धनो उद्देश स्पष्ट रीते पूर्वे वर्तमान हो ज जोईए. मारुं एम मान, छे के आ जवान साधुओने मार्ग बताववाना छे.' तनी रचना शैली अध्ययनो प्राचीन परंपरागत साहित्यमांथी ज उद्धृत करी पण आ ज प्रयोजनने उपकारक थाय तेवी राखवामां लीधेला छे. कारण के तेनी वर्णनशैली तथा भाषाशैली आवी छे. तेमां घणा छदोनो पण उपयोग करवामा परस्पर भिन्न होय तेम स्पष्ट जणाई आवे छे. अने ते आव्यो छे, जेथी तेमां कवित्वना पण समावेश थएलो बाबत एक ज कर्तानी कल्पना साथे संगत थई शकती के एम मानवु जोईए, आमांधी केटलीक गाथाओगें रूप नही
गाथाअनुरूप नथी; अने आम मानवानुं बीजु कारण ए छे के वर्तमान कत्रिम लागे छे अने ते उपरथी ए ग्रंथ एक ज कताना सिद्धांतोमा घणा ग्रंथो आ ज प्रकारे उत्पन्न थथा छे, एम रचेलो होय तेम आपणे मानी शकीए छीए. बीजो मान्या विना छट को नथी. कया समयमां आ प्रस्तुत ग्रंथो स्कन्ध प्रथम स्कन्धमा चर्चेला विषयो उपर लखेला
रचवामां आव्या अथवा तो वर्तमान स्वरूपमा मुकवामा निबन्धोनो एक समूह होय एम जणाय छे.
आव्या ते प्रश्ननो संतोषदायक निर्णय करी शकाय तेम उत्तराध्ययन अने सूत्रकृतांग बन्ने सूत्रोनो उद्देश तथा नथी. परंतु आ ग्रंथनो वाचनार स्वाभाविक रीते ज आ तेमा चर्चाएला केटलाक विषयो परस्पर समान छ, बाबतमा भाषांतरकारनी अभिप्राय जाणवानी आशा परंतु सूत्रकृतांगना मूळ भाग करतां उत्तराध्ययन वधारे राखता होवाथी, हं अत्यंत संकोचपूर्वक मारो मत जाहेर लांबं छे तेम ज ते सूत्रनी योजना पण वधारे कुशळता- करु छ के, सिद्धान्त ग्रंथोना घणा खरा भागो, प्रकरणो पर्वक करवामा आवी छे. तेनो मुख्य आशय नविन तथा आलापको खरेखर जुनां छे. अंगानु आलेखन साधने तेनी मुख्य फरजोनो बोध आपवाना, तथा विधि अने प्राचीन काळमां ( परंपरानुसार भद्रबाहुना समयमां) उदाहरणो द्वारा यति जीवननी प्रशंसा करवानो, तेना दक्षिा- धयं हतं: सिद्धान्तना अन्य ग्रंथो काळक्रमे घj करीने काळ दरम्यान आवत विघ्नो सामे चेतवणी आपवानो, तथा ई. स. पूर्वेनी पहेली शताद्विमां संगृहित थया हता. केटलंक तात्विक ज्ञान आपवाना पण छ.पाखडामतानु वणाक परत देवी गणिए सिद्धान्तोनी आ छल्ली आवात्त तैयार ठेकाणे सचन मात्र करवामां आव्युं छे परंतु तेमने विस्तृत करी ( वि. सं. ९८० ई. स. ४५४ ) त्यां सुधी तेमा होने चचेवामां आव्या नथी. ते दिशामांथी आवतां विन्नो सानो
आता ग जेम जेम वखत जवा मांड्यो तेम तेम स्पष्ट रीते ओछा उत्तराध्ययन अने सूत्रकृतांगनुं भाषान्तर, में,मने मळे
१ पुराणी परंपरा अनुसार दीक्षा लीधा पछी चार वर्ष वात्या ली साथी प्राचीन टीकाओमा स्वीकारेला मळना आधारे बाब सूत्रकृतांगनुं अध्ययन कराक्थामा भाषतुं हतं.
करेलु छे. आ मूळ, हस्तलिखित अन्य प्रतिओ तथा