Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Karyalay

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Page 76
________________ १७८ जैन साहित्य संशोधक [ खंड १ तानुसार, मक्खलिपुत्त गोसालनी मोटी असर थयेली छे. भगवती १५, १, मां आपेलो तेना जीवननो इतिहास, हॉर्नले पोताना उपासग दसाओना भाषान्तरने अंते, एक परिशिष्टमा संक्षेपमा भाषान्तरित करेलो छे. तेमां एम माणे नोवेलुंछे के, गोसाल महावीरनी साथे तेमना शिष्य तरी के श्रमणधर्म पाळतो थको छ वर्ष सुधी रह्यो हतो. परन्तु पछी ते तेमनाथी जुदो थई गयो अने पोतानो नवो धर्म स्थापी जिन तरीके आजीविकोनो नायक कहेवडावया लाग्यो. परन्तु बौद्ध ग्रंथोमां तेना संबंध एवी नॉच मळी आवे नोंध छे के ते नन्द वच्छ अने किस संकिचनो उत्तराधिकारी तो अने तेनो संप्रदाय साधुवर्गमा चिरस्थापित (लांचा वत पूर्वे स्थापित थलो एवो) मनातो होई अलक परिवाजका नामे प्रसिद्ध हतो. जैनोनी ए हकिकत के महावीर अने गोसाल ए बन्ने केटलाक वखत सुधी साधे तपश्चर्या करी हती, तेमां शंका करवानुं काई कारण नयी परन्तु तेओ बन्ने वच्चे जे संबंध बताववामां आवे छे ते वास्तवमां तैनाथी जुदा प्रकरनो होय तेम लागे छे. मारुं एवं मानवु छे; - अने मारा आ अभिप्रायना पक्षमां हुं हमणा जकेटलीक दकीलो आपीश के महावीर अने गोसाल ए बने पोताना संप्रदायोने एक करवाना अने एकने बीजामां मेळवी देवाना इरादाथी परस्पर सहचारी बन्या हता अने लांबा वखत सुधी आ बन्ने आ चाय साधे राहता. ए बाबत उपरथी चोकस अनुसूचवे छे भने तेओना धार्मिक आचारोनुं वर्णन महि आवे छे. परंतु आ बाबतना संबंधमा मारुं एवं मानवुं छे के जैनोए मूळ आ विचार आजीविको पासेथी लीवो हतो, अने पाळची पोताना बजा बचा सिद्धान्तोनी साधे ते संगत बने तेी रीते ते फेरफार कर्यो हतो. आचार विषयक संघळा नियमोना संबंधमां, जेटला प्रमाणो उपलब्ध थाय छे ते उपरथी, लगभग सिद्ध थाय छे के महावीरे अधिक कठोर नियमो गोसालना लीधा हता. कारण के उत्तराध्ययन २३, १३ ( पृ० १२) मां जणाव्या प्रमाणे पार्थना धर्ममा निधाने नीचे अने उपरना भागमां एकेक वस्त्र पेहरवानी छूट हती. परंतु वर्ष मानना धर्ममा कपडानो स्पष्ट निषेध करवामां आव्यो हतो. न साधु माटे जैन सूत्रोमा अनेक स्थळे मळी आवतो शब्द 'अक'' छे जेनो शब्दार्थ 'वन रहित' एवो थाय छे. 'वस्त्र बौद्धो अचेलको अने निर्बंधोंने भिन्न भिन्न माने छे. उदाहरण तरीके धम्मपदं उपरनी बुद्धद्घोषकृत टीकामा केट लाक भिक्षुओना संबंधमां जणावेलू छे के, तेओ अचेलको करतां नियोने वधारे पसंद करता हता. कारण के अ लको तद्दन नग्न रहे छे ( सब्बसो अपटिच्छन्ना ) परन्तु निर्धन्यो कोई जातनुं ड्रंकुं आवरण राखे छे जेने ते मि क्षुओ खोटी रीते 'लगानी खातर' मानता हता. अचेलक शब्दद्वारा बौद्धो मक्ख गोसाल अने तेनी पूर्वे ई गएला किस संकिच अने नन्द बच्च्छना अनुयायिओ मनिकायमा संगृहीत राख्युं छे. तेमां ते स्थले निगण्ठपुत्त सचक — जेनी ओळखाण आपणने उपर बई गएली छे मान थाय छे के ते बन्नेना मतोनी वच्चे केटलंक साम्य हो ज जोईए आगळ पृ० २६ उपरनी टीपमां में जणा छे के 'सच्चे सत्ता सव्ये पाणा, सब्वे भूता सध्ये जीवा' ना स्वरूप वर्णन गोसाल तेमज जैनोनी बसे समान छे. अने टीकामा जणावेल एकेद्रिय द्विन्द्रियादि वर्गरूपे प्रा जिओना विभागों के जे जैन ग्रंथोमां बना ज साधारण छ, सेवा विभागोनो गोसाले पण उपयोग कयौं छे. चमस्कारी अने लगभग असल्यामासरूप छ लेश्यानो जैनसि द्वान्त, जेने पहेली ज वखत दृष्टिगोचर कपतुं मान कर्यानुं प्रो० ल्यूमनने घटे छे -- गोसाले करेला सघळी मनुष्यजाति माटेना छ वर्गोंना विभाग सावे संपूर्ण रीते मळतो — १ बीजो एक शब्द ' जिनकल्पिक ' छे जेनो अर्थ 'जिन जेवो आचारपालनार बई शके. शांवरो कह ले के जिनकल्पने मछे प्राचीन काळमां ज स्थानरकल्प स्विर करवामां अयो बदले आवी हते जेनी अंदर पत्र राखवानी छूट आपणामा जान हती. १ जओ फुसूबोलनी आवृत्ति, पृ. ३९८. २ मूळ अविलासेसकं पुरिमसमर्पिता व परिच्छान्ति ए शब्दो बेरावर स्पष्ट धता नवी परंतु तेमां वामां आवरोध निशंकरीते ए ज भावार्थ सूचवे छे. पाली शब्द ' सेसक ' ते मारा धारवा प्रमाणे संस्कृत 'शिक्षक' नुं रूप छे आ जो खरूं होय तो उपरना शब्दानुं भातान्तर नीचे प्रमाणे ६ई शके 'तेभो ( शरीरना) आगला भाग उपर (कपडुं) पहेरी गुद्यांगने ढांके छे

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