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जैन साहित्य संशोधक
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दृष्टिए मल्लवादीनी ए टीकार्नु घणुं ज महत्त्व होई शके पीना सन् १९२१ ना जान्युआरी-फेब्रुआरी मासना संयुक्त छे. कारण के तेना आधारे न्याय शास्त्रना विकास अंकमां एक महत्त्वनी टिप्पणी प्रकाशित करी छे. अने इतिहास संबंधी अनेक प्रश्नोनो विशिष्ट ऊहापोह करी तो शोधक जनोए ए टीकानी पण गवेषणा करवी आवशकाय छ; अने ते उपरथी अनेक अज्ञात बाबतोनुं ज्ञापन श्यक छे. आवी ज रीते बीजा-पण अनेक ग्रंथोनां नामो अने संदिग्ध वातोनु निराकरण करी शकाय छे. तेथी जोवामां आवे छे के जे ए सुचिमां नोधायला छे पण सम्मतिनी ए टीकानी शोधखोळ करवा माटे दरेक अत्यारे उपलब्ध थता नथी. विद्वानने आग्रहपूर्वक भळामण करवामां आवे छे. सम्मतिनी एक त्रीजी टीकानी पण एमां नोध करेली।
ही आ सूचि बे हस्तलिखित प्रतो उपरथी मुद्रित करछे. तेनो कर्ता कोण छे ते एमां जणाव्युं नथी. १
वामां आवी छे जेमांनी एक प्रत तो लगभग ३००फक्त ' अन्य कर्तक' छे, एम जणावी छे. कदाच ए ४०० वर्ष जटला जुनी हती अने एक नवी लखाएली टीका कोई दिगंबर विद्वान् कृत होय, जेना संबंधमां हती. बंने प्रतो वडो दराना जैन ज्ञानमंदिर वाळा प्र. अमारा विद्वान् मित्र श्रीयुत नाथू रामजी प्रेमीए जैनहितै- श्री कांतिविजयजीना शास्त्र संग्रहमांनी हती.
एक ऐतिहासिक पत्र
[नोटः--आ नोटनी नीचे आपेलो पत्र मने एक करता यति, संन्यासी, बनजारा अने बाजीगर आदि जे मजूना भंडारमां पडेला रद्दी कागळोना ढगलामाथी मळ्यो नुष्य हमेशा देशाटण अथवा परिभ्रमण करता रहेता तेओ ज छे. कोई कोई वार रद्दी कागळोमांथी बहु महत्त्वनी चीजो राष्ट्रीय तेम ज सामाजिक परिस्थितिथी विशेष वाकेफ रहेता. मळी जाय छे के जेने साधारण मनुष्य नकामी गणीने ए बीना आ कागळ उपरथी स्पष्ट थाय छे. राज्यक्रान्तिकचरामा फें की दे छे. आ पत्र विक्रम संवत् १८३१ मां ना वखतमां लोकोने केवा केवा संकटो भोगववा पडे छे, लखायलो छे. ते मेवाड राज्यना प्रसिद्ध देवस्थान एनो पण ख्याल आ कागळ उपरथी थई शके छे. संसार'नाथद आरा' थी तपागच्छना यति ऋषभविजयजीए नो संसर्ग तजीने यति-संन्यासी थयेला मनष्योने पण देशनी पोताना कोई वृद्ध अने पूज्य यतिना उपर लखेलो छे. अस्वस्थताने लीधे केवु अस्वस्थ थई जर्बु पडे छे ए बाबतेमर्नु नाम पत्रनी किनारी फाटी जवाथी जतुं रहयुं छे. तनुं पण स्पष्ट अने अनुभूत वर्णन आ पत्रमा छे. संवत् पत्रनी भाषा राजपूतानी-मुख्यत्वेकरी मेवाडी छे. आ १८३१ मां राजपूतानानी-विशेषतः मेवादनी-सामाजिपत्रमा ए समयनी राजपुतानानी राजकीय परिस्थितीनो क, आर्थिक अने राजकीय परिस्थिति केवी हती एनुं बहु सारो अने मजेदार चितार आपेलो छे. ए जुना संक्षेपमां पण पूर्ण विश्वसनीय वर्णन आ पत्रमा छे. ऋषवखतमां ज्यारे रेलवे, टपाल, तेमज समाचारपत्र विगेरे भविजयजी एक सारा विद्वान् यति हता (जेना प्रमाण साधनो न होतां त्यारे लोकोने एक बीजा प्रतिमा किंवा मने बीजा अनेक उल्लेखोमांथी मळ्या छ परन्तु ए बधांना राज्यमां शीशी हीलचालो थई रही छे ए: जाण- अत्रे उल्लेख करवानी आवश्यकता नथी.) एयी तेमनी वामां आवतुं हतुं. ए जमानामा सर्वसाधारण लोकोना पासे अनेक प्रकारना मनुष्योनुं आवागमन रहेतुं ज हशे.