Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 72
________________ जैन साहित्य संशोधक १७४ प्रा वता हशे. आ अनुमानने बीजी टेको मळे छे. बुद्ध अने लोन एवा मक्खलि गोसले मनुष्य जातिनी मनुष्य जातिनी गौमां वहेचणी करी हती.' बुद्धघोषना 'कहेवा आ छ वर्गमांना श्रीजावर्गमां निर्धन्योनां समावेश करवामां आग्यो तो हवे विचारीए के निर्मन्यो जो तेज अरसामां हयातीमां आव्या होत तो तेमनी गणना एक खास पटले के मनुष्य जातिना एक स्वतंत्र पेटाविभाग तरीके कदापि न करवामां आधी होत. जरूर तेणे नियं न्धोने एक महत्वना अने साधे मारा मानवा प्रमाणे मा चीन बौद्धो मानता हता तेम एक प्राचीन संप्रदायरूपें लख्या इशे मारा उपरोक्त छेला मतनी पुष्टिमां नीचे मुजवनी दलील पण छे. मन्झिमनिकाय, ३५ म बुद्ध अने सचक नामना एक निर्बन्धपुत्र वसे धरला वादनुं वर्णन आपे छे. सचक वादमां नातपुतने हराव्यानी बढाई आपेलुं मारतो होवाथी ते निर्धन्य होय तेम लागतो नयी अने बी ए के जे सिद्धान्तोनुं ते समर्थन करवा मधे छे ते सिद्धान्तो जैनोना नथी. अ उपरथी ए विचारवा जे छ के एक प्रसिद्ध वादी के जेनो पिता निर्ग्रन्थ हतो अने जे पोते बुद्धनो समकालीन हतो, तेना पुरावा उपरथी नि न्योनो संप्रदाय बुद्धना समयमा स्थापित थयो हतो तेम भाग्ये ज मानी शकाय. · एक बाबत द्वारा पण महावीरना समका - छव छ व मुजब हवे आपणे जे जे जैनंतर पाखंडी मतावलबिओ सामे जैनोए पोतानो तात्त्विक विरोध बताव्यो छे, अने ते संबंधे जे उल्लोखो तेओए कर्याी छे, ते तपासीए, अने तेनी साथै बौद्धोना उल्लेख सरखावीए सूत्रकृतांग २, १,५५ ( पृ० ३८८ ) अने २१ ( पृ० ३४३ ) मां घणे अंशे एवा वे जडवादी सिद्धान्तोनो परस्पर मळता आवता २० १ दीघनिकाय, सामफल २ मंगलवासीनी १६२मा उद्धघोष स्पष्ट जणावे छे के गोसाले पोताना शिष्ये चतुर्थ वर्गेना हता तेना करता निर्धन्धो ने इलकी प्रतिमा गण्या छे. गोसाले तो भिक्खुओने तेथीए हलका प्रकारना गण्या छे के जे बाचत उपर बुद्धघोषे लक्ष्य आप्युं नथी. ते उपरथी ष्ट जाणाव के के भा भिक्छुभने बौद्ध साधुओ करता वे भिन्न मानतो हतो. [ खंड १ तेनुं ज बनेलुं छे उल्लेख छे. पहेला सूत्रमां जे लोको आत्माने एक अने अभिन्न माने छे तेमना एक अभिप्रायनुं वर्णन छ, अने बीजा सूत्रमां पंचभूतने नित्य अने बधुं तेम माननार एक सिद्धान्तनुं वर्णन आपे बने मत ना अनुयायीओ श्रीवतां प्राणीनी हिंसा करवामां पाप मानता नथी. आवाज प्रकारनो मत सामञ्ञफलसुत्तमां पूरण कस्सप अने अजित केशकंबलिनो होवानुं बतान्युं छे. पूरण कस्सप पुण्य अगर पाप जेबी कोई वस्तुने मानतो नथी अने अजित केसकम्बलांनो एवो सिद्धांत छे के अनुभवातीत मंतव्य के जे लोकोमा प्रचलित छे तेने मळतु कोई तत्व ज नथी. आ उपरान्त ते एम माने छेके 'माणस (पुरिस ) चार भूतोनो बनेलो छ, न्यारे छे; से मरी जाय छे त्यारे पृथ्वी पृथ्वीमां, पाणी पाणीमां, अनि अझिमा वायु वायुमां, अने ज्ञानेंद्रियो हवामां ( अथवा आकाशमा ) विलीन थई जाय छे. ठाठडीने उपाढनार, चार पुरुषो मुडदाने स्मशानभूमिमा लई जाय छे त्यारे कल्पांत करे छे कपोत रंगना हाडक बाकी रहे छे अने बीजा सपळां ( पदार्थों) बळीने भस्मीभूत भई जाम छे. आ छेल्लं सूत्र थोडा फेरफार साधे सूत्रकृतांग ना पृ० ३४० उपर आये छे: अन्य ' जनो मुडदाने बाळवा माटे लई आय के प्यारे अग्नि तेने बाळी नांवे छे त्यारे मात्र कपोतरंगना हाडकां बाकी रहे छे अने चार उपाडनारा ठाठडीने लई गाम तरफ पाछा बळे छे. जडवादना बीजा सिद्धांत (पृ. ३४३, २२, अने पृ. २३७ ) ना संबंधमां एक बीजी शाखानो पण उल्लेख १ माकाशने बौद्ध ग्रंथोमां पांचमा तत्त्व तरीके मान्युं नथी, परन्तु जैन ग्रंथोमां ते मान्युं छे. जुमो आगळ पृ० ३४३ ओन पृ० २३७ गाथा १५. आ मात्र एक शाब्दिक भेद छे नहीं के तात्त्विक. 1 २. हुं भ स्थल बने मूळ सूत्रोने सामसामे मुकुं हुं जेथी करीने तेमनी चेनुं साम्य पधारे स्पष्टी समजो शकायःनसन्द पचमा पुरिक्षा मतमा | अददगार पर िभिज दाय गच्छन्ति याच अळाहना | अगणित सरीरे कोपदानि पञ्ञापन्त, कापोतकानि | तवाई अहनि असन्दि होनि भवन्ति भवन्ता हुतियो | पञ्चमा पुरिक्षा गार्म पचा गच्छन्ति

Loading...

Page Navigation
1 ... 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116