________________
अंक ४]
डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोपरनी प्रस्तावना
थएलो छे. ते मतमां पांच भूत उपरान्त छठे तत्त्व नि ७ मी गाथामा थरलो छे. साथे ए पण जणावतुं जोईए त्यात्मा मनाय छे. आ मत ते अत्यारे वैशेषिक नामना के वेदान्ति ओ अथग तेमना मंतव्योनो पण सिद्धान्तोमा दर्शनथी जे प्रसिद्धिमां आवेलुं छे तेनुं प्राचीन अथवा घणे स्थले उल्लेख आवे छे. सूत्रकृत गना बीजा पुस्तकलोकपसिद्ध रूप छे. बौद्धग्रंथमां आ दर्शनना संस्थापक ना पहेला अध्ययनमा, पृ. ३४४ उपर, त्रीजा पाखंड तरीके पकुध कच्चायन निर्दिष्ट थएलो छे. तेनो मत एवो मत तरीके वेदान्तनुं वर्णन थएलुं छे. छठा अध्ययनमां, हतो के आलुं विश्व सात वस्तुनु ( पदार्थोनु ) बनेलुं छे. पृ. ४१७ उपर, तेनुं फरीथी वर्णन आवेलुं छे. परंतु अने ते सर्व पदार्थो नित्य निर्विकार अने परस्पर बौद्धोए गणावेला छ तीर्थीकोमा आ मतनो कोई पण आस्वतंत्र छे. ते पदार्थो चार भूत, सुख, दुःख अने आत्मा चार्य नहीं होवाथी आपणे ते उपर आ स्थळे ध्यान ए प्रमाणे छे. आ सर्वेनी एक बीजा उपर कोई असर देता नथी. १ थती नहीं होवाथी कोई पण पदार्थनो वास्तविक नाश सुत्रकृतांगना बीजा भागना प्रथम अध्ययनमा, चोथा थतो नथी. मारे कहेवू जाईए के सुख अने दुःखने नित्य पाखंड मत तरीके दैववाद ( Fatalism ) नुं वर्णन मानवा छता पण ते बन्नेनी आत्मा उपर कोई असर आवलं छे. सामञ फलसत्तमां आ मतनुं मक्खली गोथती न मानवी ते मारा अभिप्राय प्रमाणे तो अज्ञानता साल नीचे प्रमाणे प्रतिपादन करे छः– महाराज, जीभरेलुं छे. परन्तु बौद्धोए कदाच असल सिद्धान्तोनु असत्य वात्माओनी अपवित्रतामां कोई हेतु अगर पहेला हयाती आलेखन कर्यु होय तो ते पण संभवित छे. पकुध कच्चायनना धरावतुं एवं कांई कारण नथी. ते अनन्यकृत छे. तेम ज ते विचारो अवश्य करीने अक्रियावादमां अंतर्गत थाय छे. पटेला हयाती भगवती कोई बीजी
छ. पहेला हयाती धरावती कोई बीजी वस्तुथी उत्पन्न थयेली अने आ बाबता ते वैशेषिक दर्शन के जे क्रियावादी नथी. ( तेवी ज रीते ) जीवात्माओनी पवित्रतामां पण छे तेनाथी भिन्न पडे छे. आ बन्ने वादो बौद्ध तेम ज जैन कोई कारण अगर पूर्वे हयाती धरावतो कोई हेतु नथी. साहित्यमां आवता होवाथी तेमनी विशेष व्याख्या करवी
या करवा ते अनन्यकृत छे. तेम ज तेनु:कोई उपादान कारण नथी.
जनोई सामान अहीं अस्थाने नहीं गणाय. जे सिद्धान्त आत्माने आनी उत्पत्ति व्यक्तिओना कोई आचारनं परिणाम नथी. क्रियाशील अने क्रियालिप्त (क्रियाथी जेना उपर असर तेम ज पारकाना कायेंनी पण तेना उपर असर नथी. तेम थाय तेवो ) माने छे ते क्रियावादी कहेवाय छे. आ
मनुष्यप्रयत्न, पण ते फल नथी. जेने उत्पन्न करवामा, वर्गमां जैनधर्म, ब्राह्मणधर्मो पैकी वैशेषिक अने न्यायदर्श
पुरुषनी शक्ति, प्रयत्न, बल, धैर्य, अगर सामर्थ्य एमानुं नो ( आ बे दर्शनोना स्पष्ट उल्लेखो बौद्ध अने जैन धर्म
कोई कारणभूत थतुं नथी. सर्वे सत्त्व, सर्वे प्राणिओ, शास्त्रोमां थएला नथी) तथा बीजां पण एवां केटलांक
सर्वे भूतो, अने सर्वे जीवो, पछी ते पशु, अगर वनस्पति दर्शनो-के जेनां नाम अत्यारे उपलब्ध थई शकतां
१ एक वात याद राखवा जेवी छ के वेदान्तिओ पण बुद्धना नथी परंतु जेनी हयातीनी माहीती आपणे आपणा आ
प्रतिस्पर्धी तरीके काम बजावता अने तेओ वैदिक धर्भना तत्त्वज्ञाग्रंथोमांथी मेळवी शकीए छीए, ते सर्वेनो-समावेश थाय मां आगळ पडता होवाथी आपणे एम अनुभान करवू जोईए के छे. अक्रियावाद ते सिद्धान्त कहेवाय छे जेमां आत्मानुं बौद्ध धर्मनी असरवाळा लोकाथी विद्वान् ब्राह्मणो दूर ज रहेता.
* मळमां 'सव्वे सत्ता, सव्वे पाण', सब्बे भूता, सव्वे जीवा, नास्तित्व अगर निष्क्रियत्व अथवा कर्मालिप्तत्व प्रतिपादन
एवो पाठ छे. जैन सूत्रोमां पण आ ज क्रमथी अनक ठेकाणेए करवामां आवे छे. आ वर्गमा सवळा जडवादी मता; पाठ भावे छे. अने ए पाठन संक्षेपमाall classes of liviब्राह्मणधर्मो पैकी वेदान्त, सांख्य अने योगदर्शनो; तथा ng beings. बौद्ध धर्मनो अंतर्भाव थाय छे. बौद्ध धर्मना क्षणिकवाट सचेतन प्राणओना बधा वर्गो' एवं भाषान्तर करेल छे.
बुद्ध घोषनी टीकार्नु भाषान्तर, हार्नले, उवासगदसाओना परि. तथा शून्यवादनो उल्लेख सूत्रकृतांग १, १४, ४ थी अने शिष्ट नं. २ जाना पान १६ उपर नीचे प्रमाणे आप्यु छे 'सब्वे