Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Karyalay

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Page 57
________________ अंक ४ ] एक ऐतिहासिक पत्र ६५९ मांथी जो आवी जातना साहित्यनी शोध खोळ करवामां आवे तो एमांथी अनेक प्रकारना एवां ऐतिहासिक साधनो मळी शके के जे धर्म अने देश एम उभय दृष्टिथी बहु महत्त्वना थई पडे तेम छे. संपादक बीजं मेवाड राज्यना घणा खरा कर्मचारीओ जैनी ओसवाळ ज वधारे हता, एथी तेमनी मारफते यति-साधुओनी पा एवी बातोना विश्वसनीय खबरो विशेष रूपमा आवे ए पण स्वाभाविक छे. यतिवर्गना अधिकारवाळा जुना भांडारो ।। ६० ।। स्वस्ति श्रीपार्श्व परमेश्वरं प्रणम्य श्रीमति तत्र श्रीजीदुआरातो से । ऋषभविजयस्सानंदेन लिखत्यपरं वंदणा १०८ वार अवधारवीजी. अत्र सुष व श्रेय छई तथा श्रीपंडितजीना सुख पत्र देई हर्ष पोष करवाजी. अपरं श्रीपंडितजी परमेष्ट श्रेष्ठ सकल गुणगरिष्ठ विद्वज्जन वरिष्ठ संत दंत सज्जनसिरोमणि कृपानिधान सर्वत्र राजसभायां लब्धसन्मान गुणालंकृत परम प्रीतिपात्र गुणग्राहक मोटा सत्पुरुष छो. सेवकोपरि सदा हितप्रीति सुदृष्टि राषो छो तिमज राघवीजी. जे दिवसै श्रीपंडितजस्युं मिलस्युं वातो करस्युं ते दिवस घणुं सफल करी जाणस्युं जी. अपंच गत वर्षे पत्र १ श्रीपंडीतजीनो गोढवाडनो, एक अनुचर हस्ते श्रीजीदुआरामें आव्यो हतो, वैशाष द्वितीय मैः ते हस्ते पत्र १ श्रीपंडितजीना नामनो... हस्ते मूक्यो हतो ते पोहताना समाचार नाव्याजी: बीजुं इकतीसानो चोमासो श्रीजी - दुआरै थयाजी: उदेपुरमै ठांणुं २ बैठा राख्या छेः वस्तुभाव कुशल षेमै रह्यौ छैः ओर सर्वस्थानक नष्ट थयापिण आपणो आलय कुशल षेमे रह्यो छेः भगवान राष्यो छे; माल्यानो साजबाज भंडाऱ्या मध्ये मूकी बे मालिम करी ने श्रीदुआरे आव्योः सर्व वणिक दिसोदिस नीकले गया : सकल साधासुं दषल थई. सात दिवस फतेषांन मावथनी ओरीयै ठांणुं १५ संघातै बैठा रह्याः सर्व महाजन चोरासीगच्छना मिली राद्य सहस्र तृक दीघा पंडित जमान थयो त्यारै सात दिवस घढी २ दिन रहते अठे आव्या. सर्व श्रावक साथ पंडित साथै आवी साधांने पारणो कराव्योः पछे वणिक पिण नीकल्या ने अमे पिण नीकली आघाट आव्याः मास बे तिहां रह्या; तिहां पिण पंडितजीनो कारण संधीइ लोप्युं त्यारै पंडित जाबतो करी नाथदुआरे पोहचता कय; हवै रावत अर्जुनसिंघजी मैहतो लषमीचंद विजैसिंघ नाणाविटी दिषणीना पंडित रूपनगर वालानो कांमदार देवदास मुंणोत मिली उदेपुर आव्या; च्यार लाष रुपया जूना देई ने संधी (सिंधी - काबुली ) सर्व ने बारे काढ्या छेः दीवांण हमीर पासे रजपूतनो साथ मूकी संघनी चोकी रावला मांहिथी घणा कष्टथी काढी छे: हवे सतानी ठक्यारडानै थई छै जीः त्वारांनो जोर घणो वधी गयोः सहिर मध्ये नोग्यारो क्रोडां पांनै पड्यो; सर्व षोदे षणे ग्यारो ग्राह्य कीधो; हजी हजार ५० जूना देणा छैः ते दीधे सर्व नीकलस्यैः पंच महाजन नाडोल हता ते रावत अर्जुनसिंवना पत्रथी आव्या छेः वराड फेर हजार २८ नो नांष्यो छेः रुप्या हम्मीरसाई उदेपुरमै नवा पडे छेः टका २० चाले छे: ते दीधे संधीनो कालो कट त्यारै लोक उदेपुर मै पाछा आवश्ये जी: हजी देशनो बिग्रह मिठ्यौ नहीं छैः दोय राणा छैः हमीरजी तो अडसीने पाट उदेपुर मै छे: रतनसिंघ कुंभलमेर मै बैठा छे: जोगी साबत छे; गोढवाढ विजेसिंघजी ने छे: चीतोड, मांडलगढ, उदेपुर, राजनगर, ए जायगां राणा हमीरजीनो अमल छे. सेरोनलो, कुंभलमेर, कैलवाडो, देवगढ रतनसिंघजीनों अमल छैः देश मै लूटा षोसो पकडणो मारणो आमो सामो लागे रह्यो छे; नाथदुआरे महाराजनी फोज हजार बारेसे पड्या छेः ते तिमज छे: महाराज विजैसिंघनी फोज रावोदास मिली देवसूरी वाला ऊपरे आव्या हताः वास राट धूलवाणी मिली पिण देवसूरीवालो महाराजसुं नम्यो नही, सोलंबीनो मजो रह्योः फोज झषमारे पाछी गई. ढाणां मै बैठो छै: नाल देवसूरीनी कोई छोडी नहींः बीरम मेडत्यो चांणोदवालो जोधपुर चाकरी मै पड्यो रडवडे छेः सोलंषी नी टेक घणी रही: रांडने पगे लागो तथा विजेसिंवने पगे लागो: चाकर चितोडरो छु. आउआ वाला तसिंघ महाराज विजेसींधे ठारयो. चांपावत तेहना बेटा गुणावल कहुंजे छांडी आव्या छे: इस्यो रूप बणे रह्यो छे: जैपुर मैं पिण मेवाड सरीषो विषो लागे है. रावत जसूंतसिंघजी ने जैपुरमांहिथी परा काढ्या छे: सोबोकरजी

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