Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Karyalay

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Page 32
________________ जैन साहित्य संशोधक। होता है कि नेमिचन्द्रने इसकी रचना की है ।" हम तर उन्नतिको ध्येय मानता है, और इसी लक्ष्यसे समझते हैं, इस स्थानपर नेमिचन्द्रके ग्रन्थोंका संक्षिप्त उसने गोम्मटसारमें जैन-आचार्योंके सिद्धान्तोंका सार वृत्तान्त दे देना उत्तम होगा । दिया है । साधारण रूपसे इस ग्रन्थमें जैन-दर्शन शास्त्रके गोम्मटसार । मुख्य मुख्य सिद्धान्तोंका समावेश है |.... इसका नाम गोम्मटसार पडनेका कारण यह है कि गोम्मटसारके भाष्य । यह चामुण्डरायके पठनार्थ लिखा गया था, और हम स्वयं चामुण्डरायने कानडी भाषामें गोम्मटसारकी बतला चुके हैं कि चामुण्डरावका दूसरा नाम गोम्मटराय एक टीका रची थी । गोम्मटसारके अन्तिम श्लोक में था । इस ग्रन्थको पञ्चसंग्रह भी कहते हैं क्योंकि इस बातका उल्लेख है कि चामुण्डरायने सर्व साधारणकी इसमें इन पाँच बातोंका वर्णन दिया है (१) बन्ध भाषामें वीर-मार्तण्डी नाम्नी एक टीका रची। चामुण्ड(२) बध्यमान (३) बन्धस्वामी (४) बन्धहेतु रायकी एक उपाधि-वीर-मार्तण्ड थी, इस लिए उसने और (५) बन्ध-भेद । अपनी टीकाका नाम रक्खा 'वीर-मार्तण्डी' अर्थात् वीर___ यह ग्रन्थ प्राकृतमें है और इसमें १७०५ श्लोक हैं। मार्तण्डकी रची हुई । चामुण्डरायकी उक्त टीका अब अप्राप्य इसके दो भाग हैं जिनके नाम हैं जीवकाण्ड और है, अन्य एक दूसरी टीकामें अब केवल इसका उल्लेख कर्मकाण्ड । इनमें क्रमानुसार ७३३ और ९७२ श्लोक मात्र है, जिसका नाम है केशववीया वृत्ति, ( अर्थात् हैं । जीवकाण्डमें मार्गणा, गुणस्थान, जीव, पर्याप्ति, केशववणी रचित ) । उसके प्रथम श्लोकमें लिखा है प्राण, संज्ञा, और उपयोगका वर्णन है । कर्मकाण्डमें ९ “ मैं कर्नाटक-वृत्तिके आधारपर गोम्मटसारकी वृत्ति अध्याय हैं, जिनके नाम हैं-प्रकृतिसमुत्कीर्तन, बन्धो- लिख रहा हुं । "" गोम्मटसारपर एक और टीका है दयसत्त्व, सत्त्वस्थानभंग, त्रिचूलिका, स्थानसमुत्कीर्तन, जिसका नाम है मन्द-प्रबोधिका, और जिसके टीकाकार प्रत्यय, भवचूलिका, त्रिकरणचूलिका, और कर्मस्थिति- हैं अभयचन्द्र ।" इन्हीं टीकाओंके आधारपर टोडररचना । आठ प्रकारके कर्म और कर्मबन्धका अपनी मल्लने हिन्दी भाषामें एक टीका लिखी है, जिसका अपनी प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेशके साथ वर्तमान समयके जैन-पंडितोंमें बहुत प्रचार है। सविस्तर वर्णन भी दिया हुआ है । कर्मके सम्बन्धके नेमिचन्द्रके गुरु । अन्य अनेक विषयोंका भी इसमें वर्णन है । संक्षेपसे गोम्मटसारमें अनेक मुनियोंके नाम दिये हैं जिनको गोम्मटसारके प्रथम भागमें जीवोंके स्वाभाविक गुण, नेमिचन्द्र आचार्य कहकर वन्दना करता है । वे नाम और उनकी उन्नतिके उपायों और उपकरणोंका वर्णन इस प्रकार हैं:-अभयनन्दि, इन्द्रनन्दि, वीरनन्दि, है; और दूसरे मागमें उन कर्मबन्ध उत्पन्न करनेवाली ४७ गोम्मटसुत्तल्लिहणे गोम्मटरायेण या कया देसी । अडचणोंका वर्णन है, जिनके निवारण करनेसे जीवोंको सो राओ चिरं कालं णामेण य वीरमत्तण्डी ।। मुक्ति प्राप्त होती है । ग्रन्थकर्ता सर्वदा जीवकी उत्तरो (गोम्मटसार कर्मकाण्ड, गाथा ९७२) ४५ सिद्धं तुदयतडुग्गयणिम्मलवरणमिचंद करकलिया । ४८ नेमिचन्द्रं जिनं नत्वा सिद्धं श्रीज्ञानभूषणम् । गुणरयणभूसणं बुहिमइवेला मरउ मुवणयलं ।। वृत्तिं गोम्मटसारस्य कुर्वे कर्णाटवृत्तितः ।। (गोम्मटसार, कर्मकांड, गाथा ९६७) (केशववीयावृत्ति) ४६ 'श्रीमच्चामुण्डराय प्रश्नानुरूपं गोम्मटसारनामधेयं ४९ मुनि सिद्धं प्रणम्याहं नेमिचन्द्रं जिनेश्वरम् । पञ्चसंग्रहशास्त्रं प्रारंभमानः ।' टीका गोम्मटसारस्य कुर्वे मन्दप्रबोधिकाम् ।। (अभयचन्द्ररचित गोम्मसारवृत्ति) ( अभयदेवकी वृत्ति) . सा

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