Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 19
________________ अंक ३] महाकवि पुष्पदन्त के समय पर विचार. [१४७ समय में समाप्त किया था । जयधवल सिद्धान्त का भी उल्लेख पुष्पदन्त ने अपने काव्य में किया है । अतः अकलंक, वीरसेन, जिनसेन व जयधवल सिद्धान्त का उल्लेख करनेवाले कवि को शक सं०७५९ से पीछे होना चाहिये। अब हमें देखना चाहिये कि क्या कोई अन्य बातें भी पुष्पदन्त के काव्यों में ऐसी हैं जो उन के समय निर्णय में सहायक हो सकती हो। आदिपुराण की उत्थानिका से विदित होता है कि कवि ने उस की रचना मान्यखेटपुर में आकर की थी और उस समय वहां ‘तुड़िगु' नाम के राजा राज्य करते थे जिन्होंने चोड़ राजा का मस्तक काटा था। मान्यखेट' निजाम हैदराबाद के राज्यान्तर्गत आधुनिक 'मलखेड़' का ही प्राचीन नाम है । अनुमान होता है कि कवि के समय में ह को जीतनेवाले किसी प्रतापी नरेश की राजधानी थी । पर जब हम इतिहास के सफे उलटते हैं तो शक सं० ७३७ से पूर्व मान्यखेट का कोई पता नहीं चलता। जान पड़ता है कि उक्त समय तक वह कोई प्रसिद्ध नगर नहीं था । उस के आसपास का प्रदेश चालुक्य राज्य के अंतर्गत था. जिस की राजधानी नासिक के निकट वातापि' या 'बादामि' नगरी थी। चालुक्य वंश की इतिश्री शक सं०६७५ में राष्ट्रकूट वंश के राजा दन्तिदुर्ग' द्वारा हुई और उनके वंशज महाराज अमोघवर्ष ने शक सं० ७३७ ( सन् ८१५) में अपनी राजधानी ‘मान्यखेट' में प्रतिष्ठित की। इसी समय से यह नगर इतिहास में प्रसिद्ध हुआ है। अब हमें यह खोज करना चाहिये कि क्या. “तुड़ेिगु' नाम के यहां कोई राजा हुए हैं ? महापुराण में अन्य कई स्थानों पर पुष्पदन्त ने इसी राजा का उल्लेख ‘शुभतुंगदेव' और 'भैरवनरेन्द्र के नाम से किया है और 'यशोधरचरित' व 'नागकुमारचरित' में राजा का नाम वल्लभराय' पाया जाता है। जहां २ इन नामों में से किसी का भी उल्लेख आया है वहां टिप्पणकार ने उस पर ‘कृष्णराज ' ऐसा टिप्पण दिया है। इस पर से यही अनुमान किया जा सकता है, जैसा कि प्रेमीजी ने कहा है, कि 'तुड़िगु' 'शुभतुंगदेव ' 'भैरवनरेन्द्र,' 'वल्लभराय' और 'कृष्णराज ' ये पांचों किसी एक ही राजा के नाम हैं और इन्हीं के समय में पुष्पदन्त ने अपने काव्यों की रचना की है। 'वल्लभराय' राष्ट्रकर नरेशों को आम उपाधि थी। अरब के कई लेखकोंने इन नरेशों का उल्लेख 'बल्हारा' शब्द से किया है, जो वल्लभराय का ही अपभ्रंश है। जिनसेनाचार्य ने हरिवंशपुराण की प्रशस्ति में 'इन्द्रायुध' को 'श्रीवल्लभ' विशेषण दिया है।" 'कृष्णराज' नाम के तीन राजा राष्टकट वंश में हुए हैं। इन में से प्रथम तो वे हैं जिनके समय में अकलंक स्वामी हुए हैं, व जिनके पुत्र और उत्तराधिकारी 'इन्द्रायुध' के समय (शक ७ देखो ' विद्वद्रत्नमाला' भाग १ पृ० २९. ८ ' उबद्धतभूभंग भीसु । तोडेपिणु चोडही तणउ सीम। भुवणेकराम रायाहिराउ । जहि अच्छइ तुहिगु महाणुभाउ । त दीण दिण्ण धन कणयपयरु । महिपरि भमंत मेवा(ल्पा)डिनयर ।। ! V. Smith: Marly History of India. Ed. III. p. 424-430. 10. “They (Arab) called the Rashtraküta kings Balhara' because those princes were in the habit of assuming the title - Vallabha' (Beloved Bier, aime) whioh, in combination with the word 'Rai' (prince ) was easily corrupted in to the form · Balhara'. [V. Smith, E. H. 1. p. 424-430.] ११ पातन्द्रिायुधि नाम्नि कृष्णनृपजे श्रीवल्लभ दक्षिणाम् । Aho! Shrutgyanam

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