Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 172
________________ सिरि-जिणभद्द - खमासमण-विरइयो raise पुर' गाणाइ, सव्वेसु चायामं ॥ ५२ ॥ ree पुरिमा 'समायामं, सव्वसो चउत्थं च । पुव्वमहिय थण्डिल निसि वोसिरणे दिवा सुवणे ॥ ५३ ॥ को बहुदेवसिए आसव - ककोलगाइएसुं च । लहसुणाइसु धुरिम, तन्नाई-वंच- मुयणे य ॥ ५४ ॥ अज्झसिर-तणेषु निव्वइयं तु, सेस-पणपसु पुरिम । अप्पडिलेहिय- पणए आसणयं तस वहे जं च ॥ ५५ ॥ ठवणमणापुच्छार निव्विसणे विरिय-गूहणाए य । जीणे' कास, सेसिय-मायासु खमणं तु ॥ ५६ ॥ दप्पेणं पाश्चान्दय-वारमणे संकिलिट्ठ-कम्मे य । दीहा'णासेविय गिलाण - कप्पावसाणे य ॥ ५७ ॥ सव्वोवहि- कप्पम्मि य पुरिमत्ता' पेहणे य चरमाए । चाउम्मासे वरिसे य सोहणं पञ्च-कल्लाणं ॥ ५८ ॥ छेयाइमसइइओ मिउणो परियाय-गव्वियस्स वि य । याईए वि तवो जीएण गणाहिवइणो य ॥ ५९ ॥ जं न भणियमिह तस्सावत्तीय दाण-संखेवं । भिन्नाइयाय वोच्छं छम्मासन्ताण जीएणं ॥ ६० ॥ भिन्नो अविसिट्ठो थिय मासो चउरो य छच्च लहु-शुरुया । निव्वी गाइ अट्ठमभत्तन्तं दाणमेपसिं ॥ ६१ ॥ इय सब्वावतीओ तवसो नाउं जह-कमं समए । जीएण देज निव्वी गाइ-दाणं जहाभिद्दियं ॥ ६२ ॥ एयं पुण सव्वं चिय पायं सामन्नाओ विणिद्दिट्ठे । दाणं विभागओ पुण दव्वाइ-विसेसियं जाण ॥ ६३ ॥ दव्यं १ खेतं २ कालं ३ भावं ४ पुरिस ५ पडिसेवणाओ ६ य । नाउमियं चिय देजा तम्मत्तं हीणमहियं वा ॥ ६४ ॥ १ महाराई - दव्वं बलियं सुलभं च नाउमहियं पि । देजा हि, दुष्बलं दुल्लभं च नाऊण हीणं पि ॥ ६५ ॥ १ लुक् सीयल साहारणं च खेत' महियं पि सीयम्मि । लुफ्खम्मि हीणतरयं; ३ एवं काले वि तिविहम्मि ॥ ६६ ॥ गिम्ह- सिसिर - वासासुं वेज' ट्ठम- दसम - बारसन्ताई । नाउं विहिणा नवविह-सुयववहारोवरसेणं ॥ ६७ ॥ ४ इट्ठ-गिलाणा भावम्मि; देज हट्ठस्ल, न उ गिलाणस्स । जावइयं वा विसर तं देज्ज, सहेज्ज वा कालं ॥ ६८ ॥ ५ पुरिसा गीया' गीया सहा'सहा तह सढा' सढा केइ । परिणामा' परिणामा अइपरिणामा य वत्थूणं ॥ ६९ ॥ तह विर-संघयणोभय-संपन्ना तदुभपण हीणा य । आय-परोभय- नोभयतरगा तह अन्नतरगा थ ॥ ७० ॥ कपट्टिमादओ विय चउरो जे सेयरा समक्खाया। Aho! Shrutgyanam [ गाथा ५२-७००

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