Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 171
________________ गाथा ३३-५१.] जीयकप्पो होणे मज्झु'कोसे आसण'मायाम-खमणाई ॥ ३३ ॥ लेवाडग-परिवासे'भत्तहो सुक्ल-सन्निहीए य। इयरीए छट्ठ-भत्त, अठ्ठमंग सेस निसिभत्ते ॥ ३४॥ १ उद्देसिय चरिम-तिगे कम्मे पासण्ड स-घर मीसे य । बायर-पाहुडियाए सपञ्चवायाहडे लोभे ॥ ३५॥ अइरं अणन्त निक्खित्त पिहिय साहरिय मीसियाईसु।। संजोग स-इंगाले दुविह-निमित्ते य खमणं तु ॥ ६॥ २ कम्मुदसिय-मीसे धायाइ-पगासणाइएसु च। पुर-पच्छकम्म कुच्छिय संसत्तालित्त-कर-मते ॥ ३७॥ अइरं परित्त निक्खित्त पिहिय साहरिय मीसियाईसु । अइमाण-धूम-कारण विवज्जए विहिय'मायाम ॥३८॥ अझोयर कड पूश्य माया'णन्ते परंपरगए य । मीसाणन्ताणन्तरगया'इए चे'गमासणयं ॥ ३९ ॥ ४ ओह-विभागुहेसोवगरण पूईय ठविय पागडिए। लो'उत्तर परियट्टिय पमेय परभावकीए य ॥४०॥ सग्गामा'हड दहर जहन्न मालोहडे झरे पढमे। सुहुम-तिगिच्छा संथव तिग मक्खिय दायगो षहए ॥१॥ पत्तय परंपर ठविय पिहिय मसेि अणन्तराईसु पुरिमई, संकाए ज सका तं समावज्जे ॥४२॥ इत्तर ठवियग सुहुम ससणिद्ध ससरपत्र मक्खिए चेष।। मीस परंपर ठवियाइएसु बीएसु निविगई ॥ ४३ ॥ सहसाणाभोगेणं जेसु पडिकमण'माहियं तेसु। आभोगओ'इबहुसो अइप्पमाणे य निधिगई ॥४४॥ धावण डेवण संघरिस-गमण किहा कुहावणाईसु। उकुहि गीय छलिय जीवरुयाईसु य चउत्थं ॥४५॥ तिविदोवहिणो विच्चुय-विस्सरियापेहियानिवेयणए । निव्विइयं पुरिमेगासणाइ, सव्वम्मि चा'यामं ॥४६॥ हारिय-धो'-उग्गमियानिवेयणादिन-भोग-दाणेसु।। __ आसण'मायाम-चउत्थगाइ, सव्वम्मि छह तु॥४७॥ मुहणन्तय रयहरणे फिडिए निव्वीइयं चउत्थं च । नासिय हारविए वा जएिण चउत्थ-छहाई ॥४८॥ काल'द्धाणाईए निव्विइयं खमणमेव परिभोगे। अविहि-विगिञ्चणियाए भत्ताईणं तु पुरिमई ॥ ४९ ॥ पाणस्सासंवरणे भूमितिगापेहणे य निविगई । सव्वस्सासंवरणे अगहण भंगे य पुरिमई ॥५०॥ एयं चिय सामन्नं नवपडिमा भिग्गहाइयाणं पि। निव्वीयगाइ पक्खिय-पुरिसाइ-विभागओ नेयं ॥५१॥ फिटिए सयमुस्सारिय भग्गे वेगाइ वन्दणुस्सग्गे। Aho I Shrutgyanam


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