Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 170
________________ सिरि-जिणभह-खमासमण-विरइयो . [गाथा १४-३२. उवउत्तो वि न जाणइ ज देवसियाइ-अइयारं ॥१४॥ सन्वेसु वि बीय-पए दंसण-नाण-चरणावराहेसु । आउत्तस्स तदुभयं सहसकारा'इणा चेव ॥१५॥ ४ पिण्डोवहि-सजाई गहियं कडजोगिणोवउत्तेणं । पच्छा नायमसुद्धं, सुद्धो विहिणा विगिञ्चन्तो॥१६॥ काल'द्धाणाइच्छियं अणुग्गयत्थमिय-गहियमसढो उ। कारण-गहिउव्वरियं भत्ताइ विगिश्चियं सुद्धो ॥१७॥ गमणागमण-विहारे सुयम्मि सावज-सुविणयाइसु य । नावा-ना-सन्तारे पायच्छित्तं विउस्सग्गो ॥१८॥ भत्ते पाणे सयणासणे अरहन्त-समण-सेजा। उच्चारे पासवणे पणुवीसं होन्ति ऊसासा ॥ १९॥ हत्थ-सय-बाहिराओ गमणा'गमणा'इएस पणुवीसं । पाणवहाई-समिणे सय'मद्रसयं चउत्थमि॥२०॥ देसिय राइय पक्खिय चाउम्मास वरिसेसु परिमाणं । __ सयमद्धं तिनि सया पंच-सयहत्तरसहस्सं ॥ २१ ॥ उहेस समुहेसे सत्तावीसं अणुन्नवणियाए । । अट्ठेव य ऊसाला पट्टवण-पडिकमण-माई ॥२२॥ ६.१ उद्देस'ज्झयण-सुयक्खन्धंगेसु कमसो पमाइस्स । कालाइफमणाइस नाणायाराइयारेसु ॥ २३ ॥ निविगइय पुरिमडे'गभत्तमायंबिलं चणागाढे। पुरिमाई खमणन्तं आगाढे, एवमत्थे वि॥२४॥ सामन्नं पुण सुत्ते मय'मायाम चउत्थम'त्थाम्म । अप्पत्तापत्तावत्त वायणुद्देसणा'इसु य ॥२५॥ कालाविसजणा इसु मण्डाल-वसुहा'पमजणा'इसु य। निम्वियं अ-करणे, अक्ख-निसज्जा यभत्तहो ॥२६॥ आगाढ-मणागाढे सव्व-भंगे य देस-भंगे य। जोगे छ?-चउत्थं चउत्थ'मायाम्बिलं कमसो॥२७॥ २ संका'इएसु देसे खमणं मिच्छोवबूहणाए य । पुरिमाई खमणन्तं भिक्खु-प्पभिईण व चउण्डं ॥२८॥ एवं चिय पत्तेयं उवबहाईणमकरण जईण। . आयामन्त निव्वीयगाइ पासत्थ-सड्ढेसु ॥ २९ ॥ परिवाराइ-निमित्तं ममत्त-परिपालणाएँ वच्छल्ले । साहम्मिओ त्ति संजम-हेउँ वा सव्वहिं सुद्धो ॥३०॥ ३ एगिन्दियाण घट्टण'मगाढ-गाढ-परियावणुद्दवणे । निव्वीयं पुरिमहुँ आसण'मायामगं कमसो॥३१॥ पुरिमाई खमणन्तं अणन्त विगलिन्दियाण पत्तये । - पश्चिन्दियम्मि एगासणाइ कल्लाणग'महे'गं ॥ ३२ ॥ मोसाइस मेहुण-वजिएसु व्वाइ-वत्थु-भिन्नेसु। Aho! Shrutgyanam

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