Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 169
________________ १ २ ॥ णमो समणस्स भगवओ महावीरस्स || सिरि-जिणभद्द-खमासमण- विरइओ जी य क प्पो कव - पवयण-पणामो वोच्छे पच्छित्तदाण-संखेवं । जीयव्यवहार-गयं जीवस्स विसोहणं परमं ॥ १ ॥ संवर विणिज्जराओ मोच्खस्स पहो, तवो पहो तासि । तवसो य पहाणं पच्छित्तं, जं च नाणस्स ॥ २ ॥ सारो चरणं, तस्स वि नेव्वाणं, चरण- सोहणत्थं च । . पच्छित्तं, तेण तयं नेयं मोक्त्रत्थिणा' वस्सं ॥ ३ ॥ तं दसविहः -- मालोयण १ पडिकमणोभय २-३ विवेग ४ वोस्सग्गे ५ । ६ ७ ८ अणवट्ट्या ९ य पारश्चिए १० चेव ॥ ४ ॥ करणिजा जे जोगा तेसु' बउरास्स निरइयारस्स । छउमत्थस्स विसोही जाणो आलोयणा भणिया ॥ ५ ॥ आहाराई -गहणे तह बहिया निंग्गमेसु'णेगेसु । उच्चार-विहारावणि वेश्य-जर-वन्दणा' ईसु ॥ ६॥ जं च'नं करणिज्जं जाणो हत्य-सय- बाहिरायरियं । अवियडियम्मि असुद्धों, आलोएन्तो तयं सुद्धो ॥ ७ ॥ कारण-विणिग्गयस्स य स-गणाओ पर गणा' गयस्स वि य । उवसंपया - विहारे आलोयणं अणइयारस्स ॥ ८ ॥ मुत्ती -समिपमाए मुरुणो आसायणा विणय-भंगे । इच्छाईणमकरणे लहुस मुसा' दिन मुच्छासु ॥ ९ ॥ अविहीय कासि-जंभिय-खुय-वायासंकिलिट्ठ-कम्मेसु । कन्दप्प-हास-विकहा- कसाय - विसयाणुसँगे य ॥१०॥ खलियस्स य सव्वत्थ वि हिंसमणावज्जओ जयन्तस्स । सहसा'णाभोगेण व मिच्छ्कारो पडिक्कमणं ॥ ११ ॥ आभोगेण वि तणुपसु नेह-भय-सोग - बाउसाईसु । कन्दप्प-हास-विकहा इए य नेयं पडिक्कमणं ॥ १२ ॥ ३ संभम-भया उरा' वह सहस अणाभोग' गप्प-वसओ वा । सव्व- व्वयाइयारे तदुभयमासंकिए चेव ॥ १३ ॥ दुचिन्तिय दुष्भासिय दुबेट्टिय एवमाश्यं बहुसो । Aho ! Shrutgyanam

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