Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna

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Page 173
________________ गाथा ७१-९०.] जीयकप्पो सावेक्खेयर-भेयादओ वि जे ताण पुरिसाणं ॥ ७१॥ जो जह-सत्तो बहुतर-गुणो व्व तस्साहियं पि देज्जा हि। हीणस्स हीणतरगं, झोसेज्ज व सव्व-हीणस्स ॥ ७२ ॥ एत्थ पुण बहुतरा भिक्खुणो त्ति अकयकरणा'णभिगया य । जन्तेण जीय अठ्ठमभत्तन्ते निवियाईयं ॥७३॥ आउट्टियाय दप्प-प्पमाय-कप्पेहि वा निसेवेज्जा । . दव्वं खेत्तं कालं भावं वा सेवओ पुरिसो॥ ७४॥ जं जीय-दाणमुत्तं एयं पायं पमायसहियस्स। एत्तो च्चिय ठाणन्तरमेग वड्डेज्ज दप्पवओ॥७५॥ आउट्टियाएँ ठाणन्तरं च, सहाणमेव वा देज्जा। कप्पेण पडिकमणं तदुभयमहवा विणिद्दि ॥७६ ॥ मालोयण-कालम्मि वि संकेस-विसोहि-भावओ नाउँ । ___ हीणं वा अहियं वा तम्मत्तं वा वि देज्जा हि ॥७॥ इति व्वाइ-बहु-गुणे मुरु-सेवाए य बहुत्तरं देज्जा। ___ हीणतरे हीणतर, हीणतरे जाव झोस त्ति ॥ ७८॥ झोसिज्जइ सुबई पि हु जीएण'नं तवारिहं वहओ। वेयावच्चकरस्सय दिज्जह साणुग्गहतरं वा ॥ ७९ ॥ तव-गविओ तवस्स य असमत्थो तवमसद्दहन्तो य। तवसा य जो न दम्मइ अइपरिणामप्पसंगी य ॥ ८०॥ सुबहु'त्तर-मुण-भंसी छेयावत्तिसु पसज्जमाणो य। पासस्थाई जो वि य जईण पडितप्पिओ बहुसो ॥ ८१ ॥ उकोसं तव-भूमि समईओ सावसेस चरणो य। . छेयं पणगाईयं पावइ जा चरइ परियाओ॥ ८२॥ आउट्टियाएँ पश्चिन्दिय-धाए, मेहुणे य दप्पेण । सेसेसु'कोसामिपत्र-सेवणाईसु तीसुं पि॥८३॥ तवगवियाइएस य मूलुत्तर-दोस-वइयर-गएसु। दसण-चरित्तवन्ते चियत्त-किच्चे य सेहे य॥ ८४ ॥ अच्चन्तोसन्नेसु य परलिंग-दुवे य मूलकम्मे य । भिक्खुम्मि य विहिय-तवे'णवठ्ठ-पारश्चियं पत्ते ।। ८५ ॥ छेएणं परियाएं'णवठ्ठ-पारश्चियावसाणेसु।। मूलं मूलावत्तिसु बहुसो य पसज्जणे भणियं ॥ ८६ ॥ ___उकोसं बहुसो वा पउह-चित्तो व्व तेणियं कुणइ । पहरह य जो स-पक्ने निरवेक्नो घोर-परिणामो ।। ८७ ॥ अभिलेओ सव्वेसु वि बहुसो पारश्चियावराहेसु । __अणवठ्ठप्पावत्तिसु पसजमाणो य'णेगासु ॥८८॥ कीर अणवठ्ठप्पो, सो लिंग १. क्खेत २. कालओ ३. तवओ ४.। १. लिंगेण व्व भावे भणिओ पव्वावणाणरिहो ॥ ८९ ॥ अप्पडिविरओसन्नो न भावलिंगारिहो'णवठ्ठप्पो। २. जो जेण जत्थ दूसइ पडिसिद्धो तत्थ सो खेत्ते ॥९०॥ Aho I Shrutgyanam

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