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॥ अहम् ॥ ॥ नमोऽस्तु श्रमणाय भगवते महावीराय ॥ जै न सा हि त्य संशोधक
'पुरिसा! सचमेव समभिजाणाहि । सञ्चसाणाए उहिए मेहावी मारं तरा।' ‘जे एग जाणइ से सत्वं जाणा जे सव्वं जाणा से एग जाणह।' 'विठ्ठ, सुयं, मयं, विण्णायं जं पत्थ परिकहिजए।'
-निर्ग्रन्थप्रवचन-आचारांगसूत्र।
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खंड २]
[अंक ३
महाकवि पुष्पदन्त के समय पर विचार ।
[ लेखक-बाबू हिरालालजी जैन एम्. ए., एलएल० बी०।]
अपभ्रंश भाषा के इन जैन महाकवि का परिचय पाठक श्रीयुक्त नाथूरामजी प्रेमी के एक लेख से पाचुके हैं।' कवि के बनाये हुए महापुराण' और 'यशोधर चरित' से कर्ता के सम्बन्ध में जो कुछ विदित होसका है वह प्रेमीजी ने उक्त लेख में दे दिया है। कवि क बनाये हुए 'नागकुमार चरित' नामक एक और काव्य का उल्लेख उक्त लेख में आया है, पर लेख लिखते समय तक प्रेमीजी को उसकी कोई प्रति देखने नहीं मिल सकी थी। हाल में मुझे कारंजा (बरार) के शास्त्रभंडारों को देखन का अवसर मिला। वहां के बलात्कार गण मन्दिर में पुष्पदन्त कवि के 'महापुराण' और 'यशोधर चरित' के आतरिक्त ‘नागकुमार चरित' की दो प्रतियां विद्यमान हैं। एक संवत् १५५६, चैत्र शुक्ल १, शनिवार की लिखो हुई १३६ पत्रों को है, व दूसरी ८८ पत्रों की है, जिसमें लिखने का संवत् नही पाया गया, पर दखने से यह प्रथम प्रति. से कुछ पोछे की जान पड़ती है। ग्रंथ ९ संधि अर्थात् परिच्छेदों में समाप्त हुआ है। इसके भी आदि और अंत में कविने अपना कुछ परिचय दिया है। अपने पिता केशवभट्ट' व माता 'मुग्धादेवी'
१ 'जैन साहित्य संशोधक, खण्ड २, अंक १, पृष्ठ ५७-८..
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