Book Title: Jain Sahitya Sanshodhak Khand 02 Ank 03 to 04
Author(s): Jinvijay
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samaj Puna
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अक ३]
महाकवि पुष्पदन्त के समय पर विचार.
तुडं वाईसरि देवी निकेउ । तुहुं अम्हहं पुण्ण निबंध हेउ ॥ तुहुं भव्वजीव पंकरुह भाणु । पई धणु मणे मण्णिउ तिण समाणु ।
गुणवंत भत्तु तुहुं विणय गम्मु । उज्झाय पयासहि परम धम्मु ॥ घत्ता। ओलग्गिउ भावें दिणि जिदिणे । णिय मण पंकएप्पिरु थविउ ।
कइ कन्च पिसल्लउ जस धवलु । सिसजुयलेण पविण्णवउ ॥ भणु भणु सिरि पंचमि फलु गहीरु । आयण्णहि णायकुमार वीर । ता वल्लहराय महत्तएण। कलिविलसिय-दुरिय-कयंतएण ॥ कोण्डिण्णगोत्त-णह-ससहरेण । दालिद्दकंद-कंदल-हरेण । वर कन्व रयण रयणायरेण । लच्छी पोमिणि माणस सरेण ॥ पसरंत कित्ति बहु-कुलहरेण । विच्छिण्ण सरासइबंधषेण । बहु दीणलोयपूरिय धणेण । मइ-पसर-परजिय-परबलेण ॥ णियवइवि दिण्ण चिंतियफलेण । छण इंद बिंब सन्निह मुहेण । कुंदव-भरह दिय तणुरुहेण । णण्णण पवुत्तु महाणुभाव। भा कुसुमदसण हय वसण ताव। करि कव्वु मणोहरु मुयहि तंदु। जिणधम्म कन्ज मा होहि मंदु ॥ आयण्णमि भणु हउं णिम्मलाई । सियपंचमि उववासहो फलाई। णण्णण पवोल्लिउ एम जाम । णाइल्लई सीलहं एण ताम॥ का भणिउं समंजसु जस विमलु, णण्णु जि अण्णु न घरसिरिहे। तहो केरउ जाउ महग्घयरु, देविहिं गायउ सुरगिरिहे ॥ तं तुहंपि चडावह निययकवे। दिहि होउणणे आसण्ण भव्यें। बुद्धीए णण्णु सुरगुरु णमति । पर णण्णहो उ वइरिय जिणति । पहुभत्तिए हणु व समाणु दिह। परणण्णु ण वाणरु णरु विसिट्ठ । गांगेउ सउच्चे जाणय तुहि। पर णण्णु ण वइरिहुं देइ पुट्ठि ॥ धम्मेण जुहिट्ठिलु धम्मरत्तु । पर णण्णु पवासदुहेण चत्तु । चाएण कण्णु जण दिण्ण चाउ । पर णण्णु ण बंधुहुं देइ घाउ ॥ कंतीए मणोहरु छण ससंकु । पर णण्णहो णउ दीसइ कलंकु । गरुयत्ते महि सुविसुद्ध चरिउ । पर णण्णु ण किडि दाढाइ धरिउ। सुथिरते मरु भणंति जोइ । पर णण्णु परिसु पसरु ण होइ।
सायरु व गहीरु कयायरोहिं । पर णण्णु ण मंथिउ सुरवरोहिं । घत्ता । जो एहउ वण्णिउ वर कइहिं । भाविं णियमणे भावहि ।
तहो णण्णहो केरउ जाउ तुहुं । सुललिय कव्वे चड़ावहि ॥ णाइल सील भट्टारु वयणु । तं आयण्णेवि नवकमल वयणु । पडिजंपइ वियसिरि पुप्फयंतु । पडिवजमि णण्णु जि गुणमहंतु ॥ धणु पुणु महुं तणु व तणाउ कट्ठ । धम्मेण णिवद्ध मुएवि सटु । (शाठम) हउं कहां कवु जिंदंतु पिसणु । वण्णंतु सुयण विष्फुरिय वयणु ॥ दुजण सजणहो सहाउ एहु । सिहि उण्हउ सीयलु होइ मेहु ।
२ कुंदाम्बा मातु म ।
Aho! Shrutgyanam

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