Book Title: Jain Pustak Prashasti Sangraha 1
Author(s): Jinvijay
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
View full book text
________________
१००
जैनपुस्तकप्रशस्तिसङ्ग्रह । ६९. उत्तराध्ययनसूत्र ® सं० ११५९ - .... - [पाटण, सं० पा० भाण्डा०]
. संवत् ११५९ अश्विन सुदि ५ शुक्रे लिखितं । ६१०. उद्भटालंकार [लघुवृत्ति ] ® सं० ११६० ® [जेसलमेर, बृहद्भ(०] संवत् ११६० कार्तिक वदि ९ सोमदिने लिखिता।
® संवत् ११६१ ® [पाटण, सं० पा० भाण्डा०] संवत्सरसतेष्वेकादसैकषष्ठयधिकेषु [११६१] फाल्गुनसुक्ल द्वितीयायां सनिश्चरदिने । कर्मापनयनिमित्तं लिखितमिदं पंचवस्तुनः सूत्रं । श्रीवीरचंद्रसूरिभिर्लिखापितं ॥ श्रीवीरचन्द्रसूरिभ्यो दत्तेयं ज्ञानवृद्धये । पंचवस्तुकसूत्रस्य पुस्तिका गुणमतीश्रि(? च्छ्रि)या ॥
[पश्चादन्याक्षरेषु-] सं० १२६२ श्रावण वदि ६॥ 10६ १२. महावीरचरित्र [नेमिचन्द्रसूरिकृत, प्राकृत] ® सं०११६१ - [जेसलमेर, बृहद् भां०]
संवत् ११६१ चैत्र वदि ११ सोमे । ६१३. काव्यादर्श [दंडीकृत] ® सं० ११६१ ७ [जेसलमेर, बृहद् भाण्डा०]
संवत् ११६१ भाद्रपदे । ६१४. जीवसमासवृत्ति [मलधारिहेमचन्द्रकृत] ® सं० ११६४ - [खंभात, शान्तिनाथभां०] 15 संवत् ११६४ चैत्रशुदि ४ सोमेऽयेह श्रीमदणहिलपाटके समस्तराजावलिविराजित महाराजाधिराज
परमेश्वरश्रीमजयसिंहदेव कल्याणविजयराज्ये एवं काले प्रवर्त्तमाने यमनियमस्वाध्यायध्याना
नुष्ठानरतपरमनैष्ठिकपंडितश्वेतांबराचार्यभट्टारकश्रीहेमचंद्राचार्येण पुस्तिका लि० श्री.॥ ६१५. आवश्यकसूत्र ® सं० ११६६ 8 [जेसलमेर, गृहद् भाण्डा०]
संवत् ११६६ पोषवदि ३ मंगलदिने महाराजाधिराज त्रैलोक्यगंड श्रीजयसिंघदेव विजयराज्ये । 20 लिहवेहेन (१) लिखितं । १६. कथानककोश [ विनयचन्द्रसूरिकृत ] ® सं० ११६६ ७ [पाटण, सं० पा० भां०]
संवत् ११६६ अश्वयुज् कृष्णपक्षे....."विनयचंद्रस्य कथानककोशः । ६ १७. संजमाख्यानक [ विजयसिंहाचार्य ] ® सं० ११६९ - [जेसलमेर, बृहद् भाण्डा०]
संवत् ११६९......... । 25६१८. अणुवयविही ® सं० ११६९ ७ [जेसलमेर, बृहद् भाण्डा०]
संवत् ११६९ वर्षे अश्वयुजसुदि ४ शुक्रदिने लिखितेति । ६१९. उपदेशपद [हरिभद्रसूरिकृत] ® सं० ११७१ ७ [जेसलमेर, बृहद् भाण्डा०]
__ संवत् ११७१ वर्षे......।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218