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जन पूजांजलि
पापों की जड़ पर प्रहार कर, पुण्य मूल भी छेद करो ।
मोक्ष हेतु संवर के द्वारा, आश्रव का उच्छेद करो ॥ ज्ञान दीप के चिर प्रकाश से मोह ममत्व तिमिर हरलं । रत्नत्रय का साधन लेकर यह संसार पार करतूं ॥ तीन लोक... ___ॐ ह्रीं तीन लोक संबंधी कृत्रिम अकृत्रिम जिन चैत्यालयस्थ जिन विम्वेभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् नि। ध्यान अग्नि में कर्म धूप धर अष्टकर्म अघ को हरलू। धर्म श्रेष्ठ मंगल को पा शिवमय सिद्धत्व प्रात्त करलू ॥तीन... ____ॐ ह्रीं तीन लोक संबंधी कृत्रिम अकृत्रिम जिन चैत्यालस्थ जिन विम्वेभ्यो अष्ट कर्म विध्वंसनाय धूपम् नि । भेद ज्ञान विज्ञान ज्ञान से केवल ज्ञान प्राप्त करलू । परम भाव संपदा सहजशिव महा मोक्षफल को वरलू ॥ तीन... ___ॐ ह्रीं तीन लोक संबंधी कृत्रिम अकृत्रिम जिन चैत्यालयस्थ जिन बिम्बेभ्यो मोक्ष फल प्राप्तये फलम् नि० । द्वादश विधितप अर्ध संजोकर जिनवर पद अनर्घ वरलू। मिथ्या, अविरति, पंच प्रमाद, कषाय योग बंधन हरलू ॥ तीन.. ___ ॐ ह्रीं तीन लोक संबंधी कृत्रिम अकृत्रिम जिन चैत्यालस्थ जिन बिम्बेभ्यो अनर्घ पद प्राप्तये अर्घम् नि० ।
जयमाला 8 इस अनंत आकाश बीच में तीन लोक है पुरुषाकार । तीनों वातवलय से वेष्टित, सिंधु बीचज्यों बिंदु प्रसार ॥ ऊर्ध्व लोक छह, अधोसात है, मध्य एक राजू विस्तार । चौदह राजु उतंग लोक है, असनाड़ी स का आधार ॥ तीन लोक में भवन प्रकृत्रिम आठ कोटि अरु छप्पन लाख । संतानवे सहस्र चार सौ इक्यासी जिन आगम साख ॥ ऊर्ध्व लोक में कल्पवासियों के जिन गृह चौरासी लक्ष । संतानवे सहस्र तेईस जिनालय हैं शाश्वत प्रत्यक्ष ॥