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जैन पूजांजलि
श्री जिनराज मुझे निज समान कर लीजे । एक बस वीतरागता प्रदान कर दोजे ।
दोपक नित ही प्रज्ज्वलित किये अंतर तम अब तक मिटा नहीं। मोहान्धकार भी गया नहीं प्रज्ञान तिमिर भी हटा नहीं ॥ त्रिभु०
ॐ ह्रीं श्री वासपूज्य जिनन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् नि । शुभ अभुभ कर्म बन्धन भाया संवर का तत्त्व कभी न मिला। निर्जरित कर्म कैसे हों जब दुखमय आश्रव का द्वार खुला।त्रिभु० ___ ॐ ही श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय अष्ट कर्म विध्वंसनाय धूपम् नि० । भौतिक सुख की इच्छाओं का मैंने अब तक सम्मान किया। निर्वाण मुक्ति फल पाने को मैंने न कभी निज ध्यान किया।त्रिभु० ___ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्य जिनन्द्राय मोक्ष फल प्राप्ताये अय॑म् नि । जब तक अनर्घ पद मिले नहीं तब तक मैं अर्घ चढ़ाऊँगा । निज पद मिलते ही हे स्वामी फिर कभी नहीं मैं पाऊँगा। त्रिभवन पति वासु पूज्य स्वामी प्रभु मेरी भव बाधा हरलो। चारों गतियों के सङ्कट हा हे प्रभु मुझको निज सम करलो॥ ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्य जिनेन्द्रीय अनर्घ पद प्राप्ताये अर्घ्यम् नि० स्वाहा ।
श्री पंच कल्याणक त्यागा महा शुक्र का वैभव, माँ विजया उर में पाये । शुभ आषाढ़ कृष्ण षष्ठी को देवों ने मङ्गल गाये ॥ चम्पापुर नगरी की रचना, नव बारह योजन विस्तृत । वास पूज्य के गर्भोत्सव पर हुए नगर वासी हर्षित ।। ___ॐ ह्रीं आषाढ़ कृष्ण षष्टयां गर्भ मङ्गल प्राप्ताये श्री वासु पूज्य
___जिनेन्द्राय अर्घम् नि० स्वाहा। फागुन कृष्णा चतुर्दशी को नाथ आपने जन्म लिया । नृप वसुपूज्य पिता हर्षाये भरत क्षेत्र को धन्य किया ॥