Book Title: Jain Pujanjali
Author(s): Rajmal Pavaiya Kavivar
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 180
________________ १६८] जैन पूजांजलि एक देश संयम का धारी कहलाता है देशव्रती । पूर्णदेश संयम का धारी कहलाता है महाव्रती ।। एमो पंच णमो यारो जप सर्व पाप अवसान करूं। सर्व मंगलों में पहिला मंगल पढ़ मंगल गान करूं ॥ णमो कार का मंत्र जपू में णमो कार का ध्यान करूं । णमोकार को महाशक्ति से निज आतम कल्याण कह ॥ ॐ ह्री श्री पंच नमस्कार मंत्र अत्र अवतर अवतर संवौषट । ॐ ह्रीं श्री पंच नमस्कार मंत्र पत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री पंच नमस्कार मंत्र अत्र मम् सन्निहितो भव भव वषट् । ज्ञानावरणी कर्मनाश हित मिथ्यातम का करूं' प्रभाव । जन्म मरण दुख क्षय कर डालूं प्राप्त करूं निज शुद्ध स्वभाव ॥ णमोकार का मंत्र जपू मैं णमोकार का ध्यान करू । णमोकार को महाशक्ति से नाय आत्म कल्याण करू ॥ ॐ ह्रीं श्री पंच नमस्कार मत्राय ज्ञानावरणी कर्म विनाशनाय जलम निर्वपामीति स्वाहा । दर्शन आवरणी क्षय करने चिर प्रविरति का करू' अभाव । यह संसारताप क्षय करने प्राप्त करू निज शुद्ध स्वभाव ॥ णमो० ॐ ह्रीं श्री पच नमस्कार मत्राय दर्शनावरणी कर्मविनाशनाय चन्दननि०। वेदनीय की पीड़ा हरने करलूं पंच प्रमाद प्रभाव । अक्षय पद पाने को स्वामी प्राप्त करूं निज शुद्ध स्वभाव ॥णमो० ॐ ह्रीं श्री पंच नमस्कार मंत्राय वेदनीय कर्मनाशाय अक्षतम, नि०। मोहनीय का दर्प कुचलढूं कर पूर्ण कषाय प्रभाव । काम वाण की व्याधि मिटाऊं प्राप्त करू निज शुद्ध स्वाभाव ॥णमो० ___ॐ ह्रीं श्री पंच नमस्कार मंत्राय मोहनीय कर्म विध्वंसनाय पुष्पनि। प्राय फर्म के सर्वनाश हित शीघ्र करूय योग प्रमाव । क्षुध व्याधि का नाश करूं मैं प्राप्त कर निज शुद्ध स्वभाव ॥णमो० ॐ ह्रीं श्री पंच नमस्कार मंत्राय आयुकर्म नाशाय नैवेद्य म् नि ।

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