Book Title: Jain Pujanjali
Author(s): Rajmal Pavaiya Kavivar
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 192
________________ १८०] जैन पूजांजलि गगन मडलमें उड़जाऊं। तीन लोक के तीर्थ क्षेत्र सब वंदन करआऊँ ॥ अप्रत्यख्याना वरणी कषाय का नाश करूं तत्काल । प्रविरति हर अणुवत लू, समकित चंदन से चमके निज भाल ॥देव० __ॐ ह्रीं श्री सर्व जिन चरणाग्रेषु भवताप विनाशनाय चन्दनम् नि० । मैं कषाय प्रत्यख्यानावरणी हर करूं प्रमाव प्रभाव । पंच महाव्रत ले समकित अक्षत से पाऊँ शुद्ध स्वभाव ॥ देव० ___ ॐ ह्रीं श्री सर्व जिन चरणाग्रेषु अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतम् नि । प्रभु कषाय संज्वलन नाश कर पाऊँ मैं निज में विश्राम । समकित पुप्प खिले अन्तर में मैं प्ररहंत बनूं निष्काम ॥ देव० __ॐ ह्रीं श्री सर्व जिन चरणाग्रेषु कामवाण विध्वंसनाय पुष्पम् नि। पाप पुण्य शुभ अशुभ प्राश्रव का निरोध करलूं संवर । समकित चर से कर्म निर्जरा कर मैं बंध हरू सत्वर ।। देव० ___ॐ ह्रीं श्री सर्व जिन चरणाग्रेषु क्ष धा रोग विनाशनाय नैवेद्यम नि०। राग द्वेष सब का प्रभाव कर नो कषाय का कह विनाश। सम्यक् ज्ञान दीप से स्वामी पाऊँ केवल ज्ञान प्रकाश ॥ देव० ॐ ह्रीं श्री सर्व जिन चरणाग्रेषु मोहांधकार विनाशनाय दीपम् नि० । ज्ञानावरणादिक आठों कर्मों का नाश करू भगवंत । समकित धूप सुवासित हो उर भव सागर का कर, अन्त ॥ देव० ॐ ह्रीं श्री सर्व जिन चरणाग्रेषु अष्ट कर्म दहनाय धूपम् नि । गुण स्थान चौदहवां पाकर योग अभाव करू स्वामी। समकित का फल महा मोक्ष पद पाऊं हे अन्तर्यामी ॥ देव० ____ॐ ह्रीं श्री सर्व जिन चरणाग्रेषु मोक्ष फल प्राप्ताय फलम् नि० । बंध हेतु मिथ्यात्व असंयम और प्रमाद कषाय त्रियोग। समकित अर्ण मजा मंतर में पाऊ पद अनर्घ प्रवियोग । देव शास्त्र गुरु पांचों परमेष्ठी प्रभु विद्यमान जिन बीस। कृत्रिम प्रकृत्रिम जिनगृह वन्दू सर्व सिद्ध जिनवर चौबीस ॥ ॐ ह्रीं श्री सर्व जिन चरणाग्रेषु अनर्थ्य पद प्राप्ताय अर्घ्यम नि० ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223